कुलदेवी की जानकारी जिन्हें नहीं है उनके लिए पूजा विधि
कुलदेवी परिचय - उत्पत्ति, स्वरूप व महत्त्व विविध
हिन्दू समाज में कुलदेवियों का
विशिष्ट स्थान है। प्रत्येक हिन्दू वंश व कुल
में कुलदेवी अथवा कुलदेवता की पूजा की परंपरा रही है। यह परंपरा हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों द्वारा प्रारम्भ
की गई थी जिसका उद्देश्य वंश कुल की रक्षा के लिए सुरक्षा चक्र का निर्माण था, जो वंश को नकारात्मक
शक्तियों से बचाकर उन्नति की ओर अग्रसर कर सके। वर्तमान में अधिकतर हिन्दू परिवारों
में लोग अपनी कुलदेवी को भूल चुके हैं जिसके कारण उनका सुरक्षा चक्र हट चुका है। अब उन तक विभिन्न बाधाएं बिना किसी रोक टोक के पहुँच
रही हैं। परिणाम स्वरुप बहुत से परिवार परेशान है।
puja-vidhi
ऐसे लोगों के लिए हम एक पूजा-साधना
प्रस्तुत कर रहे हैं। जिसके माध्यम से आप अपनी कुलदेवी की कमी को पूरा कर सकते हैं
और एक सुरक्षा चक्र का निर्माण आपके परिवार के आसपास हो जाएगा | घर में क्लेश, बार-बार होने वाली बिमारियों, उन्नति में
होने बलि बाधाओं इत्यादि सभी समस्याओ के लिये
कुलदेवी /कुल देवता साधना ही सर्वश्रेष्ठसाधना है। चूंकि अधिकतर कुलदेवता /कुलदेवी
शिव कुल से सम्बंधित होते हैं ,अतः इस पूजा साधना में इसी प्रकार
की ऊर्जा को दृष्टिगत रखते हुए साधना पद्धती अपनाई गयी है |
सामग्री :-
४ पानी वाले नारियल,लाल वस्त्र
,१० सुपारिया ,८ या १६ शृंगार कि वस्तुये
,पान के १० पत्ते , घी का दीपक,कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर
,मौली ,पांच प्रकार कि मिठाई ,पूरी ,हलवा ,खीर ,भिगोया चना ,बताशा ,कपूर
,जनेऊ ,पंचमेवा ,
साधना विधि :-
सर्वप्रथम एक लकड़ी के बाजोट या
चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं |उस पर चार जगह रोली और हल्दी के मिश्रण से अष्टदल कमल बनाएं |अब उत्तर की ओर किनारे के अष्टदल पर सफ़ेद अक्षत बिछाएं उसके बाद दक्षिण की ओर क्रमशः
पीला ,सिन्दूरी
और लाल रंग से रंग हुआ चावल बिछाएं |चार नारियल में मौली लपेटें |एक नारियल को एक तरफ किनारे सफ़ेद चावल के अष्टदल पर स्थापित करें |अब तीन नारियल में से एक नारियल को पूर्ण सिंदूर से रंग दे दूसरे को हल्दी और तीसरे
नारियल को कुंकुम से,फिर ३ नारियल को मौली बांधे |इस तीन नारियल को पहले वाले नारियल के बायीं और क्रमशः अष्टदल पर स्थापित करें
|प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने एक पान का पत्ता और अन्य तीन नारियल के सामने
तीन तीन पान के पत्ते रखें ,इस प्रकार कुल १० पान के पत्ते रखे जायेंगे |अब सभी पत्तों पर एक एक सिक्का रखें ,फिर सिक्कों पर एक एक सुपारियाँ रखें |प्रथम नारियल के सामने के एक पत्ते पर की सुपारी पर मौली लपेट कर रखें इस प्रकार
की सुपारी दिखती रहे ,यह आपके कुल देवता होंगे ऐसी भावना रखें |अन्य तीन नारियल और उनके सामने के ९ पत्तों पर आपकी कुल देवी की स्थापना है | इनके सामने की सुपारियों को पूरी तरह मौली से लपेट दें |अब इनके सामने एक दीपक स्थापित कर दीजिये.|
अब गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न
कीजिये.| अब सभी नारियल और सुपारियों की चावल, कुंकुम,
हल्दी ,सिंदूर, जल
,पुष्प, धुप और दीप से पूजा कीजिये. | जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं |जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं |बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं ,हल्दी -रोली चढ़ा सकते हैं ,यहाँ जनेऊ चढ़ाएं ,जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए | इस प्रकार से पूजा करनी है | अब पांच प्रकार की मिठाई इनके सामने
अर्पित करें |.घर में बनी पूरी -हलवा -खीर इन्हें अर्पित करें |चना ,बताशा केवल
रंगे नारियल के सामने अर्थात देवी को चढ़ाएं |,आरती करें |साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है.| श्रृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये श्रृंगार सामग्री तीन
रंगे हुए नारियल के सामने चढा दे और माँ को स्वीकार करने की विनती कीजिये.|
इसके बाद हाथ जोड़कर इनसे अपने परिवार
से हुई भूलों आदि के लिए क्षमा मांगें और प्राथना करें की हे प्रभु ,हे देवी
,हे मेरे कुलदेवता या कुल देवी आप जो भी हों हम आपको भूल चुके हैं
,किन्तु हम पुनः आपको आमंत्रित कर रहे हैं और पूजा दे रहें हैं आप इसे
स्वीकार करें |हमारे कुल -परिवार की रक्षा करें |हम स्थान ,समय ,पद्धति आदि भूल चुके हैं ,अतः जितना समझ आता है उस अनुसार
आपको पूजा प्रदान कर रहे हैं ,इसे स्वीकार कर हमारे कुल पर कृपा
करें |
यह पूजा नवरात्र की सप्तमी -अष्टमी
और नवमी तीन तिथियों में करें |इन तीन दिनों तक रोज इन्हें पूजा
दें ,जबकि स्थापना
एक ही दिन होगी | प्रतिदिन आरती करें ,प्रसाद घर में ही वितरित करें ,बाहरी को न दें |सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता
/कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता और उन्हें दीपक
देखने तक की मनाही होती है ,किन्तु इस पद्धति में जबकि पूजा तीन दिन चलेगी कन्याएं शामिल हो
सकती हैं ,अथवा इस हेतु अपने कुलगुरु अथवा किसी विद्वान् से सलाह
लेना बेहतर होगा |कन्या अपने ससुराल जाकर वहां की रीती का पालन करे |इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं ,किन्तु साथ में
तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें |वैसे यह आवश्यक नहीं है ,क्योकि सभी लोग
पढ़े लिखे हों और सही ढंग से मंत्र जप कर सकें यह जरुरी नहीं |
साधना समाप्ति के बाद सपरिवार आरती
करे.| इसके बाद क्षमा प्राथना करें |तत्पश्चात कुलदेवता /कुलदेवी से प्राथना करें की आप हमारे कुल की रक्षा करें हम
अगले वर्ष पुनः आपको पूजा देंगे ,हमारी और परिवार की गलतियों को क्षमा करें हम आपके बच्चे हैं |तीन दिन की साधना /पूजा पूर्ण होने पर प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने के सिक्के
सुपारी को जनेऊ समेत किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले |तीन रंगे नारियल के सामने की नौ सुपारियों में से बीच वाली एक सुपारी और सिक्के
को अलग डिब्बी में सुरक्षित करें ,जिस पर लिख लें कुलदेवी |अगले साल यही रखे जायेंगे कुलदेवी /कुलदेवता के स्थान पर |अन्य वस्तुओं में से सिक्के और पैसे रुपये किसी सात्विक ब्राह्मण को दान कर दें
|प्रसाद घर वालों में बाँट दें तथा अन्य सामग्रियां बहते जल अथवा जलाशय में प्रवाहित
कर दें |
विशेष:-
इस पद्धति का उद्देश्य ऐसे परिवारों
को एक सुरक्षा कवच और कुलदेवी/कुलदेवता की एक सामान्य पूजा प्रदान करना है। यह पूजा
पद्धति केवल मध्यम मार्ग के रूप में चुना गया
है और ऐसे सामान्यजन के लाभार्थ प्रस्तुत है जो अपनी कुलदेवियों के बारे में अनजान
हैं। यह सबके लिए उपयुक्त हो आवश्यक नहीं।
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