कुलदेवी का स्वरूप : क्या कुलदेवी
और कुलदेवता अलग-अलग हैं ? -
Kuldevi ka Swarup in Hindi : पिछले लेख में हमने मरुधरा व मारवाड़ी समाज में कुलदेवियों के
विषय पर अध्ययन किया था। जिसमें कुलदेवियों की मुख्य उपासना स्थली : मरुधरा के बारे
में बताया गया था।
प्रस्तुत लेख में लोगों के कुलदेवी
और कुलदेवता से सम्बंधित एक भ्रम का निवारण करने का प्रयास करेंगे। सामान्यतः लोगों
को कुलदेवी और कुलदेवता के सम्बन्ध में एक भ्रम होता है कि क्या कुलदेवी और कुलदेवता
अलग-अलग हैं ? अथवा एक
ही हैं ? इसी भ्रम का निवारण हम इस लेख में करेंगे।
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प्रायः लोग कुलदेवी और कुलदेवता
को अलग-अलग समझते हैं। भाषा का भेद ही इस भ्रम का कारण है। देवता शब्द मूलतः संस्कृत
भाषा का है। यह वहीं से हिंदी भाषा और राजस्थानी भाषा में आया है। किन्तु संस्कृत में
देवता शब्द स्त्रीलिंग है तथा हिंदी और राजस्थानी भाषाओं में पुल्लिंग होता है। मारवाड़ी
समाज में जीण माता, करणी माता आदि को कुलदेवी तथा श्यामजी, बालाजी
आदि को कुलदेवता कहा जाता है। वस्तुतः संस्कृत भाषा के अनुसार श्यामजी, बालाजी आदि को कुलदेवता कहा जा सकता है पर सामाजिक गोत्र-परम्पराओं में इनका
उल्लेख नहीं मिलता है। पूजा के समय मन्त्रों में प्रयुक्त कुलदेवता शब्द कुलदेवी के
लिए ही प्रयुक्त होता है, क्योंकि कुलदेवता का स्थाननिर्धारण
षोडशमातृकाओं के अन्तर्गत है।
कुलदेवी के स्वरूप का निर्धारण
कुल की रीति के आधार पर होता है। कुलदेवी को कुलमाता भी कहा जाता है। घरों में सामान्यतः
देवीपूजा की ही जाती है, किन्तु विवाह के पश्चात् नवविवाहित दम्पति जात देने कुलदेवी के
धाम पर ही जाते हैं। नवजात शिशु का जड़ूला उतारने भी वहीं जाते हैं। ये मांगलिक कार्य
कुलदेवी के धाम पर ही सम्पन्न किये जाते हैं।
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होकर कुलदेवी बाधायें उत्पन्न करती हैं ? >>
अतः जिस शक्ति के लिए हम वर्तमान
में सामाजिक गोत्र परम्पराओं में ‘कुलदेवी ‘ शब्द
प्रयोग करते हैं वही मातृका शक्ति शास्त्रोक्त मन्त्रों में ‘कुलदेवता’ कही
गई है अर्थात संस्कृत शास्त्रों की दृष्टि से करणी माता इत्यादि देवियां हमारे कुलदेवता
ही हैं।
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