महाकवि ईसरदास कृत 'देवियांण'
हिन्दी अर्थ सहित -
हे देवी ! आप ही श्रीमालदेश की आराध्या महालक्ष्मी हो। आप
ही जोगणीमाता के रूप में विराजमान हो। आपने
ही दत्तात्रेय और मेधा के रूप में शक्तिसिद्धान्त का प्रचार किया। आप दैवी प्रकृति की पोषिका और आसुरी प्रकृति की
विनाशिका हो। हे कामेही! हे लोचना! आप बल से अनुराग रखने वाली हो। आप महेश
की अर्द्धांगिनी पार्वती के रूप में पर्वत पर निवास करती हो।
देवी भूतिदा
सम्मरी बीस भूजा, देवी त्रीपुरा भैरवी रूप तुल्जा,
देवी राखसं
धोम रे रक्त रूती, देवी दुर्गमं वीकटा जम्मदूती ।।
6।।
हे देवी! ऐश्वर्यदायिनी सम्मरायमाता, बीसहत्थमाता,
तुलजामाता और त्रिपुरा भैरवीमाता
आपके ही रूप हैं। धूम्रलोचन असुर को
आपने ही रक्तहीन किया था। विकट असुर दुर्गम
की मृत्यु बनकर आप ही शाकम्भरी के रूप में प्रकट हुई।
देवी गौरि रूपा अखां नव्व निद्धि, देवी सक्कळा अक्कळा स्रब्ब सिद्धि,
देवी व्रज्ज वीमोहणी
वोमवांणी, देवी शीतला मूंदला कत्तियांणी
।।7।।
हे देवी! गौरीरूप में आप अष्ट सिद्धि और नवनिधि प्रदान करती
हो। आप अकला और सकला हो। योगमाया के रूप में कंस के हाथ से छूटकर, आकाश में जाकर
उसे मृत्यु की सूचना देने वाली तथा ब्रजमण्डल को अपनी महिमा से मुग्ध करने वाली कैला
मैया आप ही हो। शीतलामाता, मूंदलमाता और कात्यायनीमाता आपके ही
रूप हैं।
देवी चंद्रघंटा महम्माय
चण्डी, देवी वीसला अन्नला वड्डवड्डी;
देवी जम्मघंटा
वदीजे बडंबा, देवी साकणी डाकणी रूढ सब्बा ।।
8।।
हे देवी! चन्द्रघण्टा, महामाया चण्डी, यमघण्टा और बड़वासन आपके ही नाम हैं। बीसल माता, अन्नपूर्णामाता
और बरवड़ीमाता के रूप में आप ही विराजमान हो। असुरों के विनाश हेतु आपने ही शाकिनी
डाकिनी आदि को प्रकट किया था। आप सर्वरूपा हो।
देवी कट्टकां हाकणी वीर कंव्री, देवी
मात वागेसरी मात गव्री;
देवी दंडणी देव
वैरी उदंडा, देवी वज्जया जैय दैतां विखंडा ।। 9।।
हे देवी! असुर सेना को भगा देने वाली कौमारी आप ही हो। आप
सबकी माता, वाणी की
देवी तथा महागौरी हो। आप देवताओं के उद्दण्ड वैरियों को दण्डित करती हो। हे दैत्यविनाशिनी विजया! आपकी जय हो।
देवी खेचरी
भूचरी भद्रखेमा; देवी पद्मणी सोभणी कुल्लप्रेमा,
देवी जम्मवा मख्ख आहूति ज्वाला, देवी वाहनी मंत्र
लीला विसाला।।10।।
हे देवी ! आप ही गब्बरवासिनी (खेचरी) अम्बामाता, बहुचरा (भूचरी)
माता, भादरियाराय (भद्र)
माता और खींवज (खेमा) माता हो। आप आराधक कुल से प्रेम करने वाली महालक्ष्मी के रूप
में शोभायमान हो। यज्ञ में अर्पित आहुति को
ग्रहण करने वाली जमवाय माता आप ही हो। आप ही ज्वालामाता हो। आप मन्त्रवाहिनी तथा लीला
से विशाल रूप धारण करने वाली हो।
देवी पांडवां कौरवां रूप बांधा, देवी कौरवां भीम
रे रूप खाधा;
देवी अर्जुणं रूप जैद्रथ्थ मार्यो, देवी जैद्रथ्थं
रूप सौभद्र टार्यो ।। 55।।
हे देवी! कौरव आपके ही अंशरूप थे, पर वे अनीति की
राह पर चले और पाण्डवों को वन में भेज दिया। सदाचारी भीम भी आपका ही रूप था। उसके रूप
में आपने अन्यायी कौरवों को नष्ट कर दिया। जयद्रथ आपका ही अंश था जिसने शक्ति का दुरुपयोग
करके अभिमन्यु को चक्रव्यूह से निकलने से रोका। तब आपने ही अर्जुन के रूप में जयद्रथ
को मारा।
देवी रेणुका रूप तें राम जाया, देवी राम रे रूप
खत्री खपाया;
देवी खत्रियां रूप दुज्राम जीता, देवी रूप दुज्राम
रे रोष पीता ।।56।।
हेे देवी! आपने ही रेणुका के रूप में परशुराम को जन्म दिया
तथा आपने ही परशुराम के रूप में सहस्त्रबाहु आदि अभिमानी क्षत्रियों का संहार किया।
जब परशुराम को अपनी शक्ति का अभिमान हुआ तो
आपने राम के रूप में क्षत्रियवंश में अवतार लेकर उनका अभिमान मिटाया। तब श्रीविद्या के साधक परशुराम के रूप में आपने क्रोधरहित जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया।
देवी मातृका रूप तें जग्त जाता , देवी जोगणी रूप तूं जग्त माता;
देवी मात रे रूप तूं अम्मि श्रावे, देवी बाळ रे रूप तूं खीर धावे ।। 57।।
हे योगस्वरूपा देवी! आपने मातृशक्ति के रूप में जगत् को जन्म दिया है।
अतःआप ही जगत् की माता हो । आप ही माता के रूप में शिशु को स्तनपान कराके उसके तन में
स्नेहामृत का संचार करती हो।
देवी जस्सुदा रूप कानं दुलारे, देवी कान रे रूप तूं कंस मारे;
देवी अम्बिका रूप खेतल् हुलावे, देवी खेतला रूप
नारी खिलावे ।। 58।
हे देवी! यशोदा के रूप में आपने ही कृष्ण का प्यार-दुलार
किया। आपने ही कृष्ण के रूप में कंस का संहार
किया। आप माता भवानी के रूप में खेतला (क्षेत्रपाल) को दुलराती हो और खेतला के रूप
में निस्सन्तान स्त्रियों को वर देकर प्रसन्न करती हो।
देवी नारि रे रूप पुर्सां धुतारी, देवी पूरसां रूप
नारी पियारी;
देवी रोहणी रूप तूं सोम भावे, देवी सोम रे रूप तूं अम्मि श्रावे ।। 59।।
हे देवी! आप ही श्रद्धा का साकार
स्वरूप नारीरूप धारण करके पुरुषों को आस्थावान् बनाती हो तथा पुरुषरूप धारण करके नारीहृदय
के प्रीतितत्त्व की अभिव्यक्ति का माध्यम बनती हो। आप रोहिणी के रूप में चन्द्रमा के हृदय को भा रही
हो तथा चन्द्रमा के रूप में अमृत बरसा रही हो।
देवी रुक्मणी रूप तूं कान सोहे, देवी
कान रे रूप तूं गोपि मोहे,
देवी सीत रे रूप तूं राम साथे, देवी राम रे रूप
तूं भग्त हाथे ।। 60।।
हे देवी! आप रुक्मिणी के रूप में कृष्ण के साथ शोभित होती
हो तथा कृष्ण के रूप में मुग्ध राधा के निःस्वार्थ समर्पित प्रेम का आलम्बन बनती हो। आप सीता के रूप में राम के साथ शोभित होती हो तथा
राम के रूप में अनन्य भक्तों के वशीभूत हो।
देवी सावित्री रूप ब्रह्मा सोहाणी, देवी ब्रह्म रे
रूप तूं निग्म वाणी;
देवी गौरजा रूप तूं रुद्र राता, देवी रूद्र रे रूप तूं जोग धाता ।। 61।।
हे देवी! आप गायत्री मन्त्र के
रूप में ब्रह्म के बुद्धिप्रेरक रूप की शोभा को प्रकट करती हो तथा ब्रह्म के रूप में
वेदवाणी का वर्ण्य विषय हो। आप शक्ति के रूप
में शिव को पूर्णता प्रदान करती हो तथा शिव के रूप में योगविद्या का प्रर्वतन करती
हो।
देवी जोग रे रूप गोरख्ख जागे, देवी गोरखं रूप माया न लागे;
देवी माइया रूप तें विस्नु बांधा,देवी विस्नु रे
रूप तें दैत खाधा ।। 62।।
हे देवी! आप योग के रूप में गोरखनाथ
में जागृत हो और गोरखनाथ के रूप में माया-बन्धन से मुक्त हो। आपने माया के रूप में
विष्णु को बाँध लिया तथा विष्णु के रूप में दैत्यों का दलन किया।
देवी दैत रे रूप तें देव ग्राह्या, देवी देव रे रूप दन्नूज दाह्या;
देवी मच्छ रे रूप तूं संख मारी, देवी संखवा रूप तूं वेद हारी ।। 63।।
हे देवी ! दैत्य आपके ही अंशरूप
हैं, पर उन्होंने
दुर्भावनावश भाई देवताओं को कैद कर लिया। तब आपने देवरूप में दैत्यों का संहार किया।
आपके ही अंशरूप शंखासुर ने आपसे प्राप्त शक्ति का दुरुपयोग करके वेदों का हरण किया। तब मत्स्यावतार के रूप में शंखासुर का वध आपने ही
किया।
देवी वेद सुध् व्यास रूपे कराया, देवी चारवां वेद ते चार पाया;
देवी लख्खमी रूप तें भेद दीधा, देवी
राम रे रूप तें ज्ञान लीधा ।। 64।।
हे देवी ! आपने व्यास के रूप में वेद का संशोधन करके उसे चार
भागों में विभक्त किया। तब चार ऋषियों ने चारों वेदों को ग्रहण कर लिया। आपने महालक्ष्मी
के रूप में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती तीन स्वरूप धारण किए। आपने ही राम के रूप में योगवासिष्ठरूपी ग्रन्थरत्न
का ज्ञान ग्रहण किया।
देवी दस्रथं रूप श्रवणं विडारी, देवी श्रव्वणं
रूप पित् मात तारी;
देवी कैकयी रूप तें कूड़ कीधा, देवी राम रे रूप
वन्वास लीधा ।। 65।।
हे देवी! माता-पिता को कावड़ से तीर्थस्नान कराने वाला श्रवण
और उसको मारने वाले राजा दशरथ दोनों आपके ही अंशरूप थे। रावण के वध हेतु आपने ही कैकेयी
के रूप में कपट करके राम को वन में भिजवाया तथा आपने ही राम के रूप में वनवास स्वीकार
किया।
देवी मृग्ग रे रूप तें सीत मोही, देवी राम रे रूप पाराध होई;
देवी बांण रे रूप मारीच मारी, देवी मार मारीच लख्णं पुकारी।। 66।।
हे देवी! आपने स्वर्णमृग के रूप
में सीताजी को मोहित किया और राम के रूप में उस मृग के शिकारी बने । आपने ही बाण के रूप में मारीच को मारा तथा मारीच
के रूप में लक्ष्मण को पुकारा।
देवी लख्खणं रांम पीछे पठाई, देवी रावणं रूप
सीता हराई;
देवी सक्रजित् रूप हन्मंत ढाळी, देवी रूप हन्मंत
लंका प्रजाळी ।। 67।।
हे देवी! आपने सीता के रूप में
लक्ष्मण को राम के पीछे भेजा। सीताहरण करने वाला रावण भी चैतन्यस्वरूपा आपका ही अंश
था। मेघनाद आपका ही अंशरूप था जिसने हनुमान को पाश में बाँधा। आपने ही हनुमान जी के रूप में लंका को जलाया।
देवी सांग रे रूप लख्णं विभाड़े, देवी लख्खणं रूप
घन्नाद पाड़े;
देवी खग्गसं रूप तें नाग खाधा, देवी नाग रे रूप हरिसेन बांधा ।। 68।।
हे देवी! आपने मेघनाद की शक्ति
के रूप में लक्ष्मण को मूर्छित किया तथा आपने ही लक्ष्मण के रूप में मेघनाद का वध किया।
आपने गरुड़ के रूप में नागों का शिकार किया। उन नागों के रूप में राम की सेना को बाँधने
वाली मायाशक्ति आप की ही थी।
देवी मृग्ग रे रूप तें रांम छळ्या, देवी रांम रे रूप दस्कंध दळ्या;
देवी कान रे रूप गिर् नख्ख चाड़े, देवी नख्ख रे रूप
हृण्कंस फाडे़ ।। 69।।
हे देवी! आपने मायावी मृग के रूप
में राम को छला तथा राम के रूप में रावण का वध किया। आपने कृष्ण के रूप में गिरिराज
को नख पर धारण किया। आपने नृसिंह के नाखून के रूप में हिरण्यकशिपु को चीर डाला।
देवी नाहरं रूप हृण्कंस खाया, देवी रूप हृण्कंस इन्द्रं हराया;
देवी इन्द्र रे रूप तूं जग्ग तूठी, देवी जग्ग रे रूप
तूं अन्न बूठी ।। 70।।
हे देवी! इन्द्र को हराने वाला
हिरण्यकशिपु आपका ही अंशरूप था। उसने शक्ति का दुरुपयोग किया तो आपने नृसिंह के रूप में उसे मार डाला। आप इन्द्र के रूप में यज्ञ से संतुष्ट होती हो तथा
यज्ञफल के रूप में वर्षा करके अन्न उत्पन्न करती हो।
देवी रूप हैग्रीव रे निग्म सूंस्या, देवी हैग्रिवं
रूप हैग्रीव धूंस्या;
देवी राहु रे रूप तें अम्मि हर्या, देवी विस्नु रे रूप तें चक्र फर्या ।।
71।।
हे देवी ! हयग्रीव आपका अंशरूप था, पर उसने अपने वास्तविक
रूप को भूलकर वेदों का हरण किया। तब हयग्रीव
अवतार धारण करके आपने वेद हरने वाले हयग्रीव को मार डाला। राहु आपका ही अंशरूप था। पर उसने गर्वोन्मत्त होकर
अमृत का हरण कर लिया। तब आपने विष्णुरूप में चक्र से उसका सिर काट डाला।
देवी संकरं रूप त्रीपूर वींधा, देवी त्रीपुरं रूप त्रीपूर लीधा;
देवी ग्राह रे रूप तें गज्ज ग्राया, देवी गज्ज गोविन्द रूपै छुड़ाया ।। 72।।
हे देवी! त्रिपुरासुर आपका ही अंशरूप था, पर उसने अनीतिपूर्वक
तीनों लोकों को त्रस्त किया। तब आपने ही शिवरूप में त्रिपुरासुर का वध किया। आपने ग्राह
के रूप में गज को पकड़कर पानी में खींच लिया तथा गोविन्द के रूप में डूबते हुए गज को
छुड़ाया।
देवी दध्धिची रूप तूं हाड दीधौ, देवी हाड रौ तख्ख तूं वज्र कीधौ;
देवी वज्र रे रूप तूं व्रत्र नाश्यौ, देवी व्रत्र रे रूप तूं शक्र त्राश्यौ ।। 73।।
हे देवी! महर्षि दधीचि के रूप में
आपने ही अस्थियों का दान दिया था। आपने ही विश्वकर्मा के रूप में अस्थियों से वज्र
तैयार किया था। वज्र के रूप में आपने ही वृत्र के प्राण लिए। वृत्र भी चैतन्यरूप में आपका ही अंशरूप था।
देवी नारदं रूप तूं प्रश्न नांख्या, देवी हंस रे रूप तत् ज्ञान भाख्या;
देवी ज्ञान रे रूप तूं ग्हैन गीता, देवी कृष्ण रे रूप गीता कथीता ।। 74।।
हे देवी! आपने देवर्षि नारद के
रूप में पितामह ब्रह्मा के समक्ष गूढ प्रश्न रखे । जब ब्रह्माजी निरुत्तर हो गए, तो आपने ही हंस
के रूप मे प्रश्नों का उत्तर देते हुए तत्त्वज्ञान का उपदेश किया। गहन ज्ञान के रूप
में श्रीमद्भगवद्गीता आप ही हो। आपने ही श्रीकृष्ण के रूप में गीता के ज्ञान का उपदेश
दिया था।
देवी बालमिक् व्यास रूपे तूं कृत्तं, देवी रामगाथा कथा भागवत्तं;
देवी काळ रे रूप तूं पार्थ लूटै, देवी पार्थ रे रूप भाराथ जूटै ।। 75।।
हे देवी! आपने ही महर्षि वाल्मीकि के रूप में रामायण की तथा
महर्षि वेदव्यास के रूप में श्रीमद् भागवतपुराण की रचना की। आपने अर्जुन के रूप में
महाभारत के युद्ध में विजय प्राप्त की थी।
समय बदलने पर अर्जुन को लूटकर उसका गर्व मिटाने वाले वनवासी भील भी आपके ही
अंशरूप थे।
No comments:
Post a Comment