कुलदेवियों के नामकरण के आधार व
नामों में विविधता का कारण -
Kuldevi Naming Basis and Differences in Names in Hindi : पिछले लेख में कुलदेवी और कुलदेवता
से सम्बंधित भ्रम का निवारण किया गया था जिसका विषय “कुलदेवी का स्वरुप : क्या कुलदेवी
और कुलदेवता अलग-अलग हैं ?” था। प्रस्तुत लेख में हम कुलदेवियों के नामकरण के विभिन्न आधारों
के बारे में जानेंगे कि अधिकांश कुलदेवियों का नाम कैसे पड़ा, और साथ ही एक ही कुलदेवी के नाम में विविधता का कारण आपको बताएँगे।
kuldevi-naming-basis-and-differences-in-names
कुलदेवियों के स्थान के नाम पर
आधारित नाम
एक ही कुलदेवी के भिन्न-भिन्न सन्दर्भों
में भिन्न भिन्न नाम प्रचलित हैं। अधिकांश नाम स्थान के आधार पर हैं। जैसे चामुण्डा
को सुंधापर्वत पर स्थित होने के कारण सुंधामाता कहा जाता है। ओसियां माता, फलौदी माता,
गोठ-मांगलोद वाली माता, गुडगाँव वाली माता,
सकराय माता, समराय माता आदि इसी प्रकार के स्थानाधारित
नाम हैं। अधिक जानकारी के लिए पढ़ें – कुलदेवियों के स्थानाश्रित नामकरण।
कुलदेवियों के स्वरूप पर आधारित
नाम
कुछ कुलदेवियों के नाम उनके स्वरूप
पर आधारित हैं। पंखिनी माता, बीसहत्थ माता,
चतुर्मुखी माता, नागनमाता, आदि नाम स्वरुपाश्रित हैं।
कुलदेवियों के वास पर आधारित नाम
जिस कुलदेवी का जहाँ वास है उसके
आधार पर भी नामकरण हो गया। बड़वासन माता, बटवासिनी, नीमवासिनी,
वटयक्षिणी, बबुली, नीमा आदि
इसी प्रकार के नाम हैं।
कुलदेवियों की महिमा पर आधारित
नाम
कुछ नाम देवी की महिमा पर आधारित
हैं। जैसे आशापूरा माता, आसावरी,
अशापूरी, अन्नपूर्णा आदि इसी श्रेणी के नाम हैं।
कुलदेवियों की विशेष पहचान पर आधारित
नाम
कुछ नाम कुलदेवी से जुड़ी विशेष
पहचान के कारण भी प्रचलित हुए। चूहों वाली माता, मूसा माता, मुसाय
माता आदि नाम इसी प्रकार के हैं।
इन नामों की विविधता का कारण लोकश्रुति
है । कुलदेवियों के नाम और स्थान की जानकारी एक पीढ़ी से अगली पीढ़ियों तक श्रुति-परम्परा
से पहुँची है । प्राचीन काल में जब जनसाधारण में तथा विशेषकर महिलाओं में शिक्षा का
प्रचलन नहीं था, तब से आज तक यह जानकारी श्रुति-परम्परा से ही हम तक पहुँची है
। इस जानकारी को एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को इस प्रकार देने के प्रयास किये गये,
जिससे आसानी से कुलदेवी को जाना-पहचाना जा सके । कुलदेवियों की जानकारी
हजारों सैंकड़ो वर्षों की कालयात्रा को पार कर हम तक पहुँची है । इसका मुख्य श्रेय महिलाओं
को जाता है, क्योंकि कुलदेवी के पूजा-अनुष्ठान में लोकरीति की
मुख्यता होती है । जात-जडूला आदि में शास्त्रीय पूजन प्रायः नहीं होता है ।
जिस प्रकार पण्डितों ने वेदमन्त्रों
को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए अनेक प्रकार के पाठ विकसित किये, उसी प्रकार महिलाओं
ने कुलदेवियों की जानकारी पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ाने के लिए तरीके अपनाये । कुलदेवियों
की जानकारी हम तक पहुँचाने के कारण भारतीय समाज अपने महिला-समाज का ऋणी रहेगा ।
No comments:
Post a Comment