KULDEVI / KULDEVTA : BHATIA COMMUNITY

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Monday, October 16, 2017

क्या उपेक्षा से नाराज होकर कुलदेवी बाधाएँ उत्पन्न करती हैं ? -



क्या उपेक्षा से नाराज होकर कुलदेवी बाधाएँ उत्पन्न करती हैं ? -

Kuldevi in Hinduism  : हिन्दू धर्म में कुलदेवी कौन है ? कुलदेवी का स्वरूप और महत्त्व क्या है ? इनकी पूजा क्यों की जानी चाहिए ? और क्यों इनकी पूजा ना होने पर परिवार अनिष्ट और विपदाओं का घर बन जाता  है?who-is-kuldevi-in-hinduism
शक्ति स्वरूपा है कुलदेवी –

समस्त ब्रह्माण्ड जिससे चालयमान है वह है शिव , और जो स्वयं शिव को चालयमान बनाती है वह है  उनकी शक्ति, आदिशक्ति । बिना आदिशक्ति के शिव भी अचल है। वह शक्ति ही है जो शिव  परिपूर्ण करती है । यह आदिशक्ति भिन्न भिन्न रूपों में ब्रह्माण्ड  की समस्त सजीव और निर्जीव वस्तुओं में विद्यमान है। यही शक्ति देवताओं में, असुरों में , यक्षों में , मनुष्यों में, वनस्पतियों में,  जल में थल में , संसार के प्रत्येक पदार्थ में भिन्न भिन्न  मात्रा में उपस्थित है। और देवताओं की शक्ति को हम उन  देवो के नामों से जानते है जैसे – महेश्वर की शक्ति माहेश्वरी , विष्णु की शक्ति वैष्णवी , ब्रह्मा की शक्ति ब्रह्माणी , इंद्र की इंद्राणी , कुमार कार्तिकेय की कौमारी , इसी प्रकार हम देवों की शक्तियों को उन्ही के नाम से पूजते हैं। और यही शक्ति जब मानवों में उन्नत अवस्था में होती है तब वे  मानव भी पूजनीय होते है.. जैसे राम , कृष्ण , बुद्ध इत्यादि। कुछ अन्य उदाहरणों में जिन मानवों को देवतुल्य माना गया है वे है  रामदेवजी, गोगाजी , पाबू जी देवी करणी जी, जीण माता इत्यादि।  जब अपने परिवार को नकारात्मक शक्तियों से मुक्त करने के लिए  इन देवताओं की शक्तियों और देवतुल्य मानवों की पूजा करना वंश परम्परा बन गया तब वे शक्तियां तथा मानव उन वंशो के कुलदेवी या कुलदेवता बने।

हिन्दू पारिवारिक व्यवस्था में कुलदेवता या कुलदेवी का स्थान हमेशा से रहा है।  प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी न किसी ऋषि के वंशज है जिनसे हमें उनके गोत्र का पता चलता है, बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णो में हो गया जो बाद में उनकी विषेशता बन गया और वही कर्म उनकी पहचान बन गई और इसे जाति कहा जाने लगा।

हमारे पूर्वजो ने अपने वंश- परिवार की नकारात्मक उर्जाओ और उनसे उत्पन्न बाधाओं  से रक्षा करने के लिए एक पारलौकिक शक्ति का कुलदेवी के रूप में चुनाव किया और उन्हें पूजना शुरू किया।  यह शक्ति उस वंश की उन्नति में नकारात्मक ऊर्जा को बाधाएं और विघ्न उत्पन करने से रोकती थी। और उस कुलदेवी का पूजन उस वंश में पीढ़ी दर पीढ़ी परंपरा बन गया।
हमारे सुरक्षा आवरण हैं कुलदेवी / कुलदेवता 

कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा, नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं, यह पारिवारिक संस्कारो और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं, यही किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता, क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है, बाहरी बाधाये,अभिचार आदि, नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुँचने लगती है, कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है, अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है, ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम सशक्त होने से होता है।
कुलदेवी की उपेक्षा अथवा भूलने  के कारण-

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने, धर्म परिवर्तन करने, आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने,  विजातीयता पनपने, इसके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता/देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा कि उनके कुल देवता/देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है, इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं, कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इनपर ध्यान नहीं दिया ।
क्या उपेक्षा से नाराज होकर कुलदेवी  बाधाएँ उत्पन्न करती हैं ?

कुलदेवी कभी भी अपने उपासकों का अनिष्ट नहीं करती। कुलदेवियों की पूजा ना करने पर उत्पन्न बाधाओं का कारण कुलदेवी नहीं अपितु हमारे सुरक्षा चक्र का टूटना है। देवी अथवा देवता तब शक्ति संपन्न होते हैं जब हम समय-समय पर उन्हें हवियाँ प्रदान करते हैं व नियमित रूप से उनकी उपासना करते हैं। जब हम इनकी उपासना बंद कर देते हैं तब कुलदेवी तब कुछ वर्षों तक तो कोई प्रभाव ज्ञात नहीं होता, किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं, नकारात्मकता ऊर्जा “वायव्य” बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है, उन्नति रुकने लगती है, पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती, संस्कारों का भय, नैतिक पतन, कलह, उपद्रव, अशांति शुरू हो जाती हैं, व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योंकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है, अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है, भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है।  कुलदेवता या देवी सम्बन्धित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति, उलटफेर, विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं, सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है।  शादी-विवाह संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं, यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है। जिन नकारात्मक शक्तियों को कुलदेवी रोके रखती हैं, सुरक्षा चक्र के अभाव में वे सभी शक्तियां घर में प्रवेश कर परेशानियां उत्पन्न करती हैं। परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती है।  अतः प्रत्येक व्यक्ति परिवार को अपने कुलदेवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा-उन्नति होती रहे । यदि आप नहीं जानते कि आपकी कुलदेवी कौन है तो पूजा के लिए यह विधि कर सकते हैं – जिन्हें कुलदेवी की जानकारी नहीं है उनके लिए पूजा विधि ।  जय माँ कुलदेवी।

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