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Monday, October 16, 2017

क्यों मनाई जाती है नवरात्रि | Navratri Story and Puja Vidhi



क्यों मनाई जाती है नवरात्रि | Navratri Story and Puja Vidhi

Navratri Story and Puja Vidhi in Hindi : नवरात्रि में देवी की आराधना का विशेष महत्त्व है।  नवरात्रि सुख व समृद्धि देती है तथा उपासना करने से जीव का कल्याण होता है। नवरात्रि क्यों मनाई जाती है इसके पीछे दो कथायें प्रचलित हैं।
नवरात्रि की प्रथम कथा

पहली कथा के अनुसार लंका युद्ध के समय ब्रह्मा ने रावण को पराजित करने के लिए देवी चंडी का पूजन कर देवी को प्रसन्न करने के लिए कहा।  और विधि के अनुसार हवन-पूजन हेतु 108 दुर्लभ नीलकमल की भी व्यवस्था कर दी। दूसरी तरफ लंकाधिपति रावण ने भी अमरत्व प्राप्त करने के लिए चंडी पाठ प्रारम्भ कर दिया। रावण ने राम की पूजा में विघ्न डालने के उद्देश्य से हवन सामग्री में से एक नीलकमल गायब करवा दिया।  इससे श्रीराम का संकल्प टूटता दिखाई दिया। सभी को यह भय सताने लगा कि कहीं देवी चंडी कुपित न हो जाये। तभी श्रीराम को स्मरण हुआ कि उन्हें ..कमल-नयन  नवकंज लोचन.. भी कहा जाता है। अतः श्रीराम ने अपना एक नेत्र माँ की पूजा में समर्पित करने का निश्चय किया। श्रीराम ने जैसे ही बाण से अपना एक नेत्र निकालना चाहा तभी माँ जगदम्बा प्रकट हुईं और कहा कि वे राम की पूजा और भक्ति से प्रसन्न हुई और उन्होंने श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दिया।

वहीं दूसरी तरफ रावण की पूजा के समय ब्राह्मण बालक का रूप धरकर वहां पहुँच गए और वहां पूजा कर रहे ब्राह्मणों से एक श्लोक में ‘भूर्तिहरिणी’ के स्थान पर ‘भुर्तिकरिणी’ उच्चारित करवा दिया।  हरिणी का अर्थ होता है पीड़ा को हरने वाली और करिणी का अर्थ होता है पीड़ा देने वाली।  इससे माँ चंडी रावण से कुपित हो गई।  और रावण को शाप दे दिया।  यह रावण के सर्वनाश का कारण  बना।
नवरात्रि की द्वितीय कथा

दूसरी कथा के अनुसार महिषासुर को उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर देवताओं ने उसे अजेय होने का वरदान  दे दिया था। वरदान पाकर महिषासुर ने उसका दुरुपयोग करना शुरू कर दिया और नरक को स्वर्ग के द्वार तक विस्तारित कर दिया। महिषासुर ने सूर्य, चन्द्र, इन्द्र, अग्नि, वायु, यम, वरुण और अन्य देवताओं के अधिकार छीन लिए और स्वर्गलोक पर अधिकार कर वहां  का स्वामी बन बैठा। तब महिषासुर के आतंक से क्रोधित होकर देवताओं ने माँ दुर्गा की रचना की। महिषासुर का वध करने के लिए देवताओं ने अपने सभी अस्त्र-शस्त्र माँ दुर्गा को समर्पित कर दिए थे। नौ दिनों तक उनका महिषासुर से संग्राम चला था और अन्त में महिषासुर का वध करके माँ दुर्गा महिषासुरमर्दिनी कहलाईं।


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नवरात्रि वर्ष में दो बार क्यों?

नवरात्रि ऐसा इकलौता उत्सव है जो वर्ष में दो बार मनाया जाता है। एक चैत्र माह में जब ग्रीष्मकाल की शुरुआत होती है और दूसरा आश्विन माह में जब शीतकाल की शुरुआत होती है। गर्मी और सर्दी के मौसम में सौर-ऊर्जा हमें सबसे अधिक प्रभावित करती है, क्योंकि इस दौरान फसल पकने, वर्षा जल के लिए बादल संघनित होने आदि जैसे जीवनोपयोगी कार्य संपन्न होते हैं। इसलिए पवित्र शक्तियों की आराधना करने के लिए यह समय सबसे उत्तम माना जाता है। प्रकृति में बदलाव के कारण हमारे तन-मन और मस्तिष्क में भी बदलाव आते हैं, इसलिए शारीरिक और मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए हम उपवास रखकर शक्ति की पूजा करते हैं। पहली बार इसे सत्य व धर्म की विजय के उपलक्ष्य में मनाया जाता है तो वहीं दूसरी बार श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में।

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नवरात्रि : देवी के पूजन की संक्षिप्त सरल व उचित विधि

माँ जगदम्बा अपने भक्तों का कल्याण करती है।  माँ की आराधना के लिए संक्षिप्त विधि प्रस्तुत है।

सर्वप्रथम आसन पर बैठकर जल से तीन बार शुद्ध जल से आचमन करे- “ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ नारायणाय नम:”

फिर हाथ में जल लेकर हाथ धो लें। हाथ में चावल एवं फूल लेकर अंजुरि बांध कर दुर्गा देवी का ध्यान करें।

आगच्छ त्वं महादेवि। स्थाने चात्र स्थिरा भव।
यावत पूजां करिष्यामि तावत त्वं सन्निधौ भव।।

‘श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:।’ दुर्गादेवी-आवाहयामि! – फूल, चावल चढ़ाएं।
‘श्री जगदम्बे दुर्गा देव्यै नम:’ आसनार्थे पुष्पानी समर्पयामि।- भगवती को आसन दें।
श्री दुर्गादेव्यै नम: पाद्यम, अर्ध्य, आचमन, स्नानार्थ जलं समर्पयामि। – आचमन ग्रहण करें।
श्री दुर्गा देवी दुग्धं समर्पयामि – दूध चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी दही समर्पयामि – दही चढा़एं।
श्री दुर्गा देवी घृत समर्पयामि – घी चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी मधु समर्पयामि – शहद चढा़एं
श्री दुर्गा देवी शर्करा समर्पयामि – शक्कर चढा़एं।
श्री दुर्गा देवी पंचामृत समर्पयामि – पंचामृत चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी गंधोदक समर्पयामि – गंध चढाएं।
श्री दुर्गा देवी शुद्धोदक स्नानम समर्पयामि – जल चढा़एं।
आचमन के लिए जल लें,
श्री दुर्गा देवी वस्त्रम समर्पयामि – वस्त्र, उपवस्त्र चढ़ाएं।
श्री दुर्गा देवी सौभाग्य सूत्रम् समर्पयामि-सौभाग्य-सूत्र चढाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै पुष्पमालाम समर्पयामि-फूल, फूलमाला, बिल्व पत्र, दुर्वा चढ़ाएं।
श्री दुर्गा-देव्यै नैवेद्यम निवेदयामि-इसके बाद हाथ धोकर भगवती को भोग लगाएं।
श्री दुर्गा देव्यै फलम समर्पयामि- फल चढ़ाएं।
तांबुल (सुपारी, लौंग, इलायची) चढ़ाएं- श्री दुर्गा-देव्यै ताम्बूलं समर्पयामि।
मां दुर्गा देवी की आरती करें।



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