KULDEVI / KULDEVTA : BHATIA COMMUNITY

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Saturday, October 21, 2017

कुल देवता – कुलदेवी का जिवन मे क्या महत्व है ?

कुल देवता – कुलदेवी का जिवन मे क्या महत्व है ?


जीवन में कुलदेवता का क्या स्थान है |
जिवन मे जब आप ज्ञान अर्जित कर जिवन की जिम्मेदारी लेने मे सक्षम हो जाते हो तब आपका प्रथम कर्तव्य कुलदेवता की शास्त्र संमत पुजा करके कुलदेवी का और माता- पिता का आशीर्वाद लेना होता है । यह जिवन  को सफल बनाने के लिए रखा गया पहिला महत्वपुर्ण कदम है और इसके कई उदाहरण हमे सभी धार्मिक ग्रंथो मे मिलेंगे।

जीवन में कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है | आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है |

मोक्षमार्ग की और बढने वाले साधु संत भी प्रथमत: कुलदेवी की कृपा संपादन कर सन्मति प्राप्त करते है |

 कुलदेवी/देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है ।  सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है । अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य  कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता।  इसे यूं समझे - यदि घर का मुखिया पिताजी /माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोइ भी आपके भले के लिया आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे "बाहरी " होते है।

खासकर सांसारिक लोगो को कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना चाहिये,

ऐसे अनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम नही होता है।  किन्तु कुलदेवी /देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते , वे अभी भी वही रहेंगे । यदि मालूम न हो तो अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता।/देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जानने की कोशिश  करे की झडूला / मुण्डन सस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है , या "जात" कहा दी जाती है ।  या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (५,६,७ वां ) कहा होता है। हर गोत्र / धर्म के अनुसार भिन्नता  होती है. सामान्यत:  ये कर्म कुलदेवी/कुलदेवता के सामने होते है. और यही इनकी पहचान है ।

कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है (निर्वंशी हो रहे हों , आर्थिक  उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है । इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं । कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इनपर ध्यान नहीं दिया |

पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे |

अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा -उन्नति होती रहे । कुलदेवी की उपासना से आपमे श्रध्दा बलवान होती है, और यह श्रध्दा आपके ह्रदय को पवित्र करती है, और आप जिवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष के पथ पर अग्रेसर हाने लगते हो ।



कुलदेवी /कुल देवता पूजा कैसे करें

कुलदेवी/कुलदेवता की जानकारी नहीं है तो कैसे इनकी पूजा करें
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प्रत्येक हिन्दू वंश और कुलों में कुल देवता अथवा कुल देवी की पूजा की परंपरा रही है |इस परंपरा को हमारे पूर्वजों और ऋषियों ने शुरू किया था |उद्देश्य था एक ऐसे सुरक्षा कवच का निर्माण जो हमारी सुरक्षा भी करे और हमारी उन्नति में भी सहायक हो |यह हर कुल और वंश के लिए विशिष्ट प्रकार की उर्जाओं की आराधना है ,जिसमे हर वंश के साथ अलग विशिष्टता और परंपरा जुडी होती है |कुछ वंश में कुल देवी होती हैं तो कुछ में कुल देवता |आज के समय में अधिकतर हिन्दू परिवारों में लोग कुल देवी और कुल देवता को भूल चुके हैं जिसके कारण उनका सुरक्षा चक्र हट चूका है और उन तक विभिन्न बाधाएं बिना किसी रोक टोक के पहुच रही हैं |परिणाम स्वरुप बहुत से परिवार परेशान हैं |इनमे स्थान परिवर्तन करने वाले अधिक हैं जैसे जो लोग आजादी के बाद पाकिस्तान से आये उनको पता नहीं हैं ,जो विदेशों में बस गए उनको पता नहीं है ,जिन्होंने किसी कारण धर्म अथवा सम्प्रदाय बदल दिया उन्हें पता नहीं है |हमने तो बहुत से सिक्ख और जैन में यह समस्या पाई है जिनके पूर्वज हिन्दू हुआ करते थे और कुल देवता की पूजा होती रही थी उनके यहाँ पहले ,पर बाद में बंद हो गयी |ऐसे कुछ परिवार आज विभिन्न बाधाओं से परेशान हैं ,पर आज की पीढ़ी को कुल देवता/देवी का पता ही नहीं है |वह अक्सर हमसे पूछते रहते हैं की आखिर वे अब करें तो क्या करें |.
ऐसे लोगों के लिए हम एक पूजा-साधना प्रस्तुत कर रहे हैं |जिसके माध्यम से आप अपनी कुलदेवी/ देवता की कमी को पूरा कर सकते हैं और एक सुरक्षा चक्र का निर्माण आपके परिवार के आसपास हो जाएगा | घर मे क्लेश चल रही हो,,कोई चिंता हो,,या बीमारी हो, धन कि कमी,धन का सही तरह से इस्तेमाल न हो,या देवी/देवतओं कि कोई नाराजी हो तो इन सभी समस्याओ के लिये कुलदेवी /कुल देवता साधना सर्वश्रेष्ट साधना है.|चूंकि अधिकतर कुलदेवता /कुलदेवी शिव कुल से सम्बंधित होते हैं ,अतः इस पूजा साधना में इसी प्रकार की ऊर्जा को दृष्टिगत रखते हुए साधना पद्धती अपनाई गयी है |इस पद्धति में कुलदेवता और कुलदेवी दोनों की भावना और स्थापना इसलिए की गयी है ताकि यदि कुलदेवी हो तो उन्हें पूजा मिल जाए और कुलदेवता हों तो उन्हें पूजा मिल जाए |जो भी आपके कुलदेवता या कुलदेवी होंगे उन्हें उनकी पूजा मिलती रहेगी |
सामग्री :-
----------- २ पानी वाले नारियल, लाल वस्त्र ,२ सुपारिया ,८ या १६ शृंगार कि वस्तुये ,पान के पत्ते , घी का दीपक, कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,पांच प्रकार कि मिठाई ,हलवा ,खीर ,भिगोया चना ,बताशा ,कपूर ,जनेऊ ,पंचमेवा ,दो चांदी की सुपारियाँ ,दो सिक्के ,मौली या कलावा या रक्षा सूत्र ,जौ -चना -गेहूं की पूरी ,बैगन की सब्जी ,कढ़ी और बेसन ,उड़द की छानी बरी ,कुछ कढ़ी में भिगोई कुछ अलग ,चने की दाल पकी हुई ,पका चावल |
साधना विधि :-
---------------- सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख हो एक लकड़ी के बाजोट या चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं |उस पर दो जगह रोली और हल्दी के मिश्रण से अष्टदल कमल बनाएं |अब उत्तर की ओर किनारे के अष्टदल पर सफ़ेद अक्षत बिछाएं उसके बाद दक्षिण की ओर लाल रंग से रंग हुआ चावल बिछाएं |दोनों नारियल में मौली लपेटें |एक नारियल को एक तरफ किनारे सफ़ेद चावल के अष्टदल पर स्थापित करें |अब  दुसरे नारियल को कुंकुम से रंग दें अथवा लाल वस्त्र में लपेट दें ,फिर इस पर मौली बांधे |इस नारियल को पहले वाले नारियल के बायीं और अष्टदल पर स्थापित करें |प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने एक पान का पत्ता और दुसरे नारियल के सामने एक पान का पत्ता रखें |अब दोनों पत्तों पर एक एक सिक्का रखें ,फिर सिक्कों पर एक एक चांदी की सुपारियाँ रखें |प्रथम नारियल के सामने के एक पत्ते पर की चांदी की सुपारी पर मौली लपेट कर रखें इस प्रकार की सुपारी दिखती रहे ,यह आपके कुल देवता होंगे ऐसी भावना रखें |दुसरे नारियल और उनके सामने के पत्ते पर आपकी कुल देवी की स्थापना है | इनके सामने की चांदी की सुपारी को पूरी तरह मौली से लपेट दें |अब इनके सामने एक दीपक स्थापित कर दीजिये.|
अब गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये.| अब दोनों नारियल और सुपारियों की चावल, कुंकुम,  हल्दी ,सिंदूर, जल ,पुष्प,  धुप और दीप से पूजा कीजिये. |जहाँ कुमकुम से रंगा नारियल है अथवा लाल कपडे से ढका  नारियल है वहां कुमकुम, सिन्दूर और श्रृंगार सामग्रियां चढ़ेंगी |बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं ,हल्दी -रोली चढ़ा सकते हैं ,यहाँ जनेऊ चढ़ाएं ,जबकि दूसरी जगह जनेऊ न  चढ़ाए | इस प्रकार से पूजा करनी है | अब पांच प्रकार की मिठाई इनके सामने अर्पित करें |.घर में बनी पूरी -हलवा -खीर ,कढ़ी ,बैगन की सब्जी ,चावल ,चने की दाल आदि इन्हें अर्पित करें |चना ,बताशा चढ़ाएं |,आरती करें |साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है.| श्रृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये श्रृंगार सामग्री लाल नारियल के सामने चढा दे और माँ को स्वीकार करने की विनती कीजिये.|
इसके बाद हाथ जोड़कर इनसे अपने परिवार से हुई भूलों आदि के लिए क्षमा मांगें और प्राथना करें की हे प्रभु ,हे देवी ,हे मेरे कुलदेवता या कुल देवी आप जो भी हों हम आपको भूल चुके हैं ,किन्तु हम पुनः आपको आमंत्रित कर रहे हैं और पूजा दे रहें हैं आप इसे स्वीकार करें |हमारे कुल -परिवार की रक्षा करें |हम स्थान ,समय ,पद्धति आदि भूल चुके हैं ,अतः जितना समझ आता है उस अनुसार आपको पूजा प्रदान कर रहे हैं ,इसे स्वीकार कर हमारे कुल पर कृपा करें |
यह पूजा नवरात्र की सप्तमी -अष्टमी और नवमी तीन तिथियों में करें |इन तीन दिनों तक रोज इन्हें पूजा दें ,जबकि स्थापना एक ही दिन होगी | प्रतिदिन आरती करें ,प्रसाद घर में ही वितरित करें ,बाहरी को न दें |सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता /कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता और उन्हें दीपक देखने तक की मनाही होती है ,किन्तु इस पद्धति में जबकि पूजा तीन दिन चलेगी कन्याएं शामिल हो सकती हैं ,अथवा इस हेतु अपने कुलगुरु अथवा किसी विद्वान् से सलाह लेना बेहतर होगा |वैसे यहाँ जबतक दीपक जले कम से कम तब तक कन्या इसे न देखे तो बेहतर |कन्या अपने ससुराल जाकर वहां की रीती का पालन करे |इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं ,किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें |वैसे यह आवश्यक नहीं है ,क्योकि सभी लोग पढ़े लिखे हों और सही ढंग से मंत्र जप कर सकें यह जरुरी नहीं |
साधना समाप्ति के बाद सपरिवार आरती करे.| इसके बाद क्षमा प्राथना करें |तत्पश्चात कुलदेवता /कुलदेवी से प्राथना करें की आप हमारे कुल की रक्षा करें हम अगले वर्ष पुनः आपको पूजा देंगे ,हमारी और परिवार की गलतियों को क्षमा करें हम आपके बच्चे हैं |तीन दिन की साधना /पूजा पूर्ण होने पर प्रथम बिना रंगे नारियल के सामने के सिक्के सुपारी को जनेऊ समेत किसी डिब्बी में सुरक्षित रख ले |लाल रंगे नारियल के सामने की सुपारी और सिक्के को अलग डिब्बी में सुरक्षित करें ,जिस पर लिख लें कुलदेवी |अगले साल यही रखे जायेंगे कुलदेवी /कुलदेवता के स्थान पर |अन्य वस्तुओं में से सिक्के और पैसे रुपये जो आपने चढ़ाए हों किसी सात्विक ब्राह्मण को दान कर दें |प्रसाद घर वालों में बाँट दें तथा अन्य सामग्रियां बहते जल अथवा जलाशय में प्रवाहित कर दें |
विशेष
----------  यह पूजा पद्धति हिन्दू ,जैन ,सिक्ख ,सिन्धी ,गुजराती ,मराठी सभी को दृष्टिगत रखते हुए बनाई गयी है और इसमें ऐसी प्रक्रिया अपनाई गयी है जिससे उनके तात्कालिक धर्म -सम्प्रदाय की मान्यता और पूजा आदि से कोई टकराव न हो |चूंकि यह सभी दुर्गा ,काली ,शिव को मानते हैं और सभी के कुलदेवता शिव परिवार से ही होते हैं अतः सभी इस पूजा को कर सकते हाँ |यदि पूजा करने में या समझने में कोई दिक्कत हो तो किसी योग्य कर्मकांडी की मदद लें |एक बार अच्छे से समझ कर पूजा करें और इसे हर साल जारी रखें |योग्य का मार्गदर्शन आपकी सफलता में वृद्धि करेगा |यह पूजा पद्धति हमारे द्वारा विभिन्न पद्धतियों का अध्ययन कर मध्य मार्ग के रूप में चुना गया है और सामान्यजन के लाभार्थ प्रस्तुत है |सबके लिए उपयुक्त हो आवश्यक नहीं ,|जो पूजन पद्धति एक बार अपनाई जाए उसे फिर बदला न जाए |सामान्य भोजन सामग्री चढाने का उद्देश्य यह है की पूर्व से ही सभी परिवारों में पारंपरिक रूप से उनके स्थानानुसार उपलब्ध भोज्य पदार्थ चढ़ते आये हैं और यह उनकी विशिष्टता होती है |हमारा उद्देश्य केवल ऐसे परिवारों को एक सुरक्षा कवच और कुलदेवी/कुलदेवता की एक सामान्य पूजा प्रदान करना है |कितने सफल हैं हम विद्वत जन विचार करें|
चेतावनी ----------- जो पूजा पद्धति एक बार अपनाई जायेगी वह फिर कभी बदली नहीं जा सकती ,टमाटर अथवा विदेशी मूल के खाद्यपदार्थ का उपयोग कुलदेवी /देवता के पूजा में न करें ,अपितु जो भारतीय मूल की वनस्पतियाँ हैं उनका ही उपयोग करें |आप अपने स्थान पर पारंपरिक रूप से बन रहे मूल खाद्य पदार्थ यहाँ चढ़ाएं और बेहतर होगा |एक बार स्थापित किये गए चादी की सुपारियों के रूप में कुलदेवी और देवता ही मूल सिक्के के साथ हमेशा के लिए कुलदेवी /देवता का स्थान लेंगे ,इन्हें नहीं बदला जा सकता न इनके साथ के सिक्के को ही बदला जा सकता है |हर साल अलग से चढ़ाए दक्षिणा के रूप के सोक्कों को अलग करके दान कर दें या मंदिर में चढ़ा दें ,वस्त्र जो पिछले साल के हों उन्हें प्रवाहित कर दें ,जाये चढ़े आसन रुपी वस्त्र ,और जनेऊ आदि के साथ चढ़ा एक पुष्प भी पूजा समाप्ति के बाद अलग डिब्बी में रख दें देवता समेत |अगले साथ यह वस्त्र और ,जनेऊ और पुष्प बदल जायेंगे |कोशिश पूरी करें की घर की अविवाहित कन्याएं पूजा समय जलते हुए दीपक को न देखें ,न कुलदेवता /देवी को छुएं |दीपक बुझने पर प्रणाम कर सकती हैं | .........[[पूर्णतया व्यक्तिगत अनुसंधान पर आधारित कुलदेवता/देवी की पूजा पद्धति अपने पाठकों सहित अपने मित्रों हेतु ]]...........................................................................हर-हर महादेव


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अगर करते है कुलदेवी/कुलदेवता की पूजा तो रखे इन बातो का विशेष ध्यान!!! अन्यथा होगा अनर्थ!!
deepika gupta | April 9, 2017 | हिंदू देवी देवता | 1 Comment



अगर करते है कुलदेवी/कुलदेवता की पूजा तो रखे इन बातो का विशेष ध्यान!!!

हिन्दू पारिवारिक आराध्य व्यवस्था में कुल देवता/कुलदेवी का स्थान सदैव से रहा है प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाती कहा जाने लगा |

पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे |

अगर करते है कुलदेवी/कुलदेवता की पूजा तो रखे इन बातो का विशेष ध्यान!!!
अगर करते है कुलदेवी/कुलदेवता की पूजा तो रखे इन बातो का विशेष ध्यान!!!

समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने धर्म परिवर्तन करने आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने संस्कारों के क्षय होने विजातीयता पनपने इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है | कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं नकारात्मक ऊर्जा वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है उन्नति रुकने लगती है पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती|



आज हम आपको बताने जा रहे है कि जब आप अपने कुल देवी या देवता की पूजा करे तो भुलकर भी यह गलतियां ना करें| इससे सिर्फ आपको ही नहीं बल्कि पुरे परिवार को नुकसान होता है|

1.जब भी आप घर में कुलदेवी की पूजा करे तो सबसे जरूरी चीज होती है पूजा की सामग्री| पूजा की सामग्री इस प्रकार ही होना चाहिये- ४ पानी वाले नारियल,लाल वस्त्र ,10 सुपारिया ,8 या 16 श्रंगार कि वस्तुये ,पान के 10 पत्ते , घी का दीपक,कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,मौली ,पांच प्रकार कि मिठाई ,पूरी ,हलवा ,खीर ,भिगोया चना ,बताशा ,कपूर ,जनेऊ ,पंचमेवा |

2.ध्यान रखे जहा सिन्दूर वाला नारियल है वहां सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं |जहाँ कुमकुम से रंग नारियल है वहां सिर्फ कुमकुम चढ़े सिन्दूर नहीं |

3.बिना रंगे नारियल पर सिन्दूर न चढ़ाएं ,हल्दी -रोली चढ़ा सकते हैं ,यहाँ जनेऊ चढ़ाएं ,जबकि अन्य जगह जनेऊ न चढ़ाए |

4.पांच प्रकार की मिठाई ही इनके सामने अर्पित करें|  साथ ही घर में बनी पूरी -हलवा -खीर इन्हें अर्पित करें|

5. ध्यान रहे की साधना समाप्ति के बाद प्रसाद घर में ही वितरित करें ,बाहरी को बिल्कुल न दें|

6.इस पूजा में चाहें तो दुर्गा अथवा काली का मंत्र जप भी कर सकते हैं ,किन्तु साथ में तब शिव मंत्र का जप भी अवश्य करें|

10. सामान्यतय पारंपरिक रूप से कुलदेवता /कुलदेवी की पूजा में घर की कुँवारी कन्याओं को शामिल नहीं किया जाता और उन्हें दीपक देखने तक की मनाही होती है| तो घर की कुँवारी कन्याओं इस पूजा से दूर रखें अन्यथा देवी देवता नाराज हो जाते है |

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१.‘कुलदेवता’ शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ
२. कुलदेवताकी उपासनाका इतिहास
३. कुलदेवताका नामजप करने का महत्व
४. कुलदेवता का रुष्ट होना
५. किसका नामजप करना चाहिए – कुलदेवता का अथवा कुलदेवी का ?
६. कुलदेवताका नामजप करनेकी पद्धति
७. नामजप कितना करना चाहिए ?
८. कुलदेवता के नामजप संबंधी प्रायः पूछे जानेवाले प्रश्‍न


विविध साधनामार्गों में शीघ्र आध्यात्मिक उन्नति करानेवाला सुलभ मार्ग है नामसंकीर्तनयोग । गुरुद्वारा दिए गए नामजप का, अर्थात गुरुमंत्र का जप श्रद्धा से करने पर मोक्षप्राप्ति होती है; परंतु नाम देनेवाले उचित गुरु न मिलें, तो अपने कुलदेवता का अर्थात कुलदेवी / कुलदेव का जप करना कैसे उचित है, यह आगे स्पष्ट किया गया है ।

१.‘कुलदेवता’ शब्द की व्युत्पत्ति एवं अर्थ

१.    कुल अर्थात आप्तसंबंधों से एकत्र आए एवं एक रक्त-संबंध के लोग । जिस कुलदेवता की उपासना आवश्यक होगी, उस कुल में व्यक्ति जन्म लेता है

२.    कुल अर्थात मूलाधारचक्र, शक्ति अथवा कुंडलिनी । कुल + देवता अर्थात ऐसे देवता जिसकी उपासना से मूलाधारचक्र में विद्यमान कुंडलिनीशक्ति जागृत होती है तथा आध्यात्मिक प्रगति आरंभ होती है । कुलदेवता, अर्थात कुलदेव अथवा कुलदेवी, दोनों ।

२. कुलदेवताकी उपासनाका इतिहास

कुलदेवताकी उपासनाका आरंभ वेदोत्तर एवं पुराणपूर्व कालमें हुआ । कुलदेवताकी साधनाद्वारा आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक  उन्नति करनेवाले एक सिद्ध उदाहरण हैं छत्रपति शिवाजी महाराज । शिवाजी महाराजके गुरु समर्थ रामदासस्वामीजीने उन्हें  उनकी कुलदेवी भवानीमाताकी ही उपासना बताई थी । संत तुकाराम महाराजने जिस पांडुरंगकी अनन्यभक्ति कर सदेह मुक्ति प्रप्त की, वह विठोबा उनके कुलदेवता ही थे ।

३. कुलदेवताका नामजप करने का महत्व

अ. हम गंभीर रोगों में स्वयं निर्धारित औषधि नहीं लेते । ऐसे में उस क्षेत्र के अधिकारी व्यक्ति अर्थात, डॉक्टर के पास जाकर उनके परामर्शनुसार औषधि लेते हैं । उसी प्रकार भवसागर के गंभीर रोगों से बचने हेतु अर्थात, अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए, आध्यात्मिक दृष्टि से उन्नत व्यक्तियों के मार्गदर्शन अनुसार साधना करना आवश्यक है; परंतु ऐसे उन्नत व्यक्ति समाज में बहुत अल्प होते हैं । ९८ प्रतिशत तथाकथित गुरु वास्तव में गुरु होते ही नहीं । अतः यह प्रश्‍न उठता है कि कौनसा नाम जपना चाहिए; परंतु इस संदर्भ में भी प्रत्येक को उसकी उन्नति हेतु आवश्यक, ऐसे उचित कुल में ही भगवान ने जन्म दिया है ।

अा. अस्वस्थ होने पर हम अपने फैमिली डॉक्टर के पास जाते हैं, क्योंकि उन्हें हमारी शरीरप्रकृति एवं रोग की जानकारी रहती है । यदि किसी कार्यालय में शीघ्र काम करवाना हो, तो हम परिचित व्यक्तिद्वारा काम करवा लेते हैं । उसी प्रकार अनेक देवताओं में से कुलदेवता ही हमें अपने लगते हैं । वे हमारी पुकार सुनते हैं एवं आध्यात्मिक उन्नति हेतु उत्तरदायी होते हैं ।

इ. जब ब्रह्मांड के सर्व तत्त्व पिंड में लाए जाते हैं, तब साधना पूर्ण होती है । सर्व प्राणियों में से केवल गाय में ही ब्रह्मांड के सर्व देवताओं की स्पंदन-तरंगें ग्रहण करने की क्षमता है । (इसीलिए गाय के उदर में तैंतीस करोड देवता वास करते हैं, ऐसा कहा जाता है ।) उसी प्रकार ब्रह्मांड के सर्व तत्त्वों को आकर्षित कर, उन सभी में ३० प्रतिशत वृद्धि करने का सामर्थ्य केवल कुलदेवता के जप में है । इसके विपरीत श्रीविष्णुु, शिव, श्री गणपति आदि देवताओं का नामजप केवल विशिष्ट तत्त्व की वृद्धि हेतु है, जैसे शक्तिवर्धक के रूप में जीवनसत्त्व अ, ब (विटामिन ए, बी) इत्यादि लेते हैं ।

४. कुलदेवता का रुष्ट होना

यदि कोई विद्यार्थी बुद्धिमान होेते हुए भी ढाई न करता हो, तो पाठशाला में शिक्षक उसे डांटते हैं । उसी प्रकार आध्यात्मिक उन्नति करने की क्षमता होने पर भी यदि कोई व्यक्ति साधना नहीं करता, तो कुलदेवता उस पर क्रोधित होते हैं; परंतु सामान्यतः उस व्यक्ति को इस क्रोध का भान नहीं होता, इसलिए कुलदेवता कुछ व्यावहारिक अडचनें उत्पन्न करते हैं  बहुत प्रयत्न करने पर भी उन अडचनों का निराकरण न कर पाने पर, वह व्यक्ति किसी उन्नत पुरुष से (संत अथवा गुरुसे) पूछताछ करता है । उन्नत पुरुषद्वारा कुलदेवता की उपासना बताए जाने पर एवं उसके अनुसार उपासना आरंभ करने पर कुलदेवता अडचनों का निराकरण करते हैं एवं उपासना में सहायता भी करते हैं ।

५. किसका नामजप करना चाहिए – कुलदेवता का अथवा कुलदेवी का ?

१.    केवल कुलदेवता होने पर उन्हींका एवं केवल कुलदेवी के होने पर कुलदेवी का नामजप करना चाहिए ।

२.    यदि किसी के कुलदेव एवं कुलदेवी दोनों हों, तो उन्हें कुलदेवी का जप करना चाहिए । इसके निम्नलिखित कारण हैं ।

अ. बचपन में माता-पिता दोनों के होते हुए हम माता के साथ ही अधिक हठ करते हैं, क्योंकि मां हमारे हठ को शीघ्र पूर्ण कर देती है । उसी प्रकार, कुलदेवता की अपेक्षा कुलदेवी शीघ्र प्रसन्न होती हैं ।

आ. कुलदेवता की अपेक्षा कुलदेवी पृथ्वीतत्त्व से अधिक संबंधित होती हैं ।

इ. आध्यात्मिक प्रगति के लिए परात्पर गुरु का दिया नाम १०० प्रतिशत, कुलदेवी का ३० प्रतिशत तो कुलदेवता का नाम २५ प्रतिशत पूरक होता है ।

६. कुलदेवताका नामजप करनेकी पद्धति

कुलदेवताके नामसे पूर्व ‘श्री’ लगाएं, नामको संस्कृत व्याकरणानुसार चतुर्थीका त्यय लगाएं एवं अंतमें ‘नमः’ बोलें, उदा. कुलदेवता गणेश हों, तो ‘श्री गणेशाय नमः ।’, कुलदेवी दुर्गा हों, तो ‘श्री दुर्गायै नमः ।’ बोलना कठिन है, इसलिए ‘देव्यै’ त्यय लगाकर ‘श्री दुर्गादेव्यै नमः ।’ बोलें ।

७. नामजप कितना करना चाहिए ?

कुलदेवता का नामजप प्रतिदिन न्यूनतम १ से २ घंटे एवं अधिकतम अर्थात निरंतर करना चाहिए ।

८. कुलदेवता के नामजप संबंधी प्रायः पूछे जानेवाले प्रश्‍न

८ अ. कुलदेवता यदि ज्ञात न हो, तो क्या करें ?

यदि कुलदेवता ज्ञात न हो तो कुटुंब के ज्येष्ठ, अपने उपनामवाले बंधु, जातिबंधु, गांव के लोग, पुरोहित इत्यादि से कुलदेवता की जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न करें । कुलदेवता के संदर्भ में जानकारी न मिलने से इष्टदेवता के नामका जप करना चाहिए अथवा ‘श्री कुलदेवतायै नमः ।’ यह जप करना चाहिए । यह जप पूर्ण होते ही कुलदेवता का नाम बतानेवाले मिलते हैं । देवता के रूप की कल्पना न होने के कारण मात्र ‘श्री कुलदेवतायै नमः ।’ ऐसा जप करना, अधिकांश लोगों के लिए कठिन हो जाता है । इसके विपरीत, प्रिय देवता को रूप ज्ञात होने के कारण उनका जप करना सहज लगता है ।

८ आ. कुलदेवता का नामजप करने से क्या लाभ होता है ?

कुलदेवता का आवश्यक जप पूर्ण होने पर गुरु साधक के जीवन में स्वयं आकर गुरुमंत्र देते हैं ।

८ इ. कुलदेवता यदि श्री गणेश-पंचायतन जैसे हो, तो नामजप कैसे करें ?

किसी के कुलदेवता श्री गणेश-पंचायतन अथवा श्रीविष्णुु-पंचायतन (पंचायतन अर्थात पांच देवता) इस प्रकार के हों, तो पंचायतन के प्रमुख देवता को क्रमशः श्री गणेश अथवा श्रीविष्णुु को ही कुलदेवता मानें ।

८ र्इ. विवाहित स्त्री ससुराल के अथवा मायके के कुलदेवता का नाम जपें ?

सामान्यतः विवाहोपरांत स्त्री का नाम परिवर्तित होता है । मायके का सबकुछ त्यागकर स्त्री ससुराल आती है । एक अर्थ से यह उसका पुनर्जन्म ही होता है; इसीलिए विवाहित स्त्री को अपने ससुराल के कुलदेवता का जप करना चाहिए । यदि कोई स्त्री बचपन से ही नामजप करती हो एवं प्रगत साधक हो, तो विवाह के पश्‍चात भी वही नामजप जारी रखने में कोई हानि नहीं । यदि गुरु ने किसी स्त्री को उसके विवाहपूर्व नामजप दिया हो, तो उसे वही नाम जपना चाहिए ।

संदर्भ – सनातनका ग्रंथ, शक्ति (भाग २)


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संबंधित देवी को कौनसे फूल चढाएं ?
१.विशिष्ट देवीको विशिष्ट फूल चढानेका शास्त्रीय आधार

देवतापूजनका एक उद्देश्य यह है कि, उस देवताकी मूर्तिके चैतन्यका प्रयोग हमारी आध्यात्मिक उन्नतिके लिए हो । विशिष्ट  फूलोंमें विशिष्ट देवताके पवित्रक, अर्थात उस देवताके सूक्ष्मातिसूक्ष्म कण आकर्षित करनेकी क्षमता अन्य फूलोंकी तुलनामें  अधिक होती है । ऐसे फूल जब देवताकी मूर्तिको चढाते हैं, तो मूर्तिको जाग्रत करनेमें सहायता मिलती है । इससे मूर्तिके चैतन्यका लाभ हमें शीघ्र होता है । इसलिए विशिष्ट देवताको विशिष्ट फूल चढाना महत्त्वपूर्ण है । इसके अनुसार आगेकी सारणीमें कुछ देवियोंके एवं उन्हें चढाने हेतु उपयुक्त फूलोंके नाम दिए हैं ।

श्री दुर्गा    श्री लक्ष्मी    श्री सप्तशृंगी    श्री शारदा    श्री याेगेश्वरी
mogra
मोगरा

गुलाब
kavthichafa
कवठी चाफा
Ratrani
रातरानी
sonchafa
साेनचाफा
श्री रेणुका    श्री वैष्णोदेवी    श्री विंध्यवासिनी    श्री भवानी  
श्री अंबा
bakuli
बकुल
nishigandha
रजनीगंधा

कमल

स्थलकमल
parijat
पारिजात
सारणीमें दिए गए विशिष्ट फूलोंकी सुगंधकी ओर, विशिष्ट देवीका तत्त्व आकृष्ट होता है । इसलिए उस सुगंध की उदबत्तीके (अगरबत्तीके) प्रयोगसे भी उस विशिष्ट देवीके तत्त्वका लाभ पूजकको अधिक मिलता है ।’

२. देवीपूजनमें निषिद्ध पुष्प

अपवित्र स्थलपर उत्पन्न हुए
अनखिले पुष्प अर्थात कलियां
बिखरी हुई पंखुडियोंवाले
निर्गंध अथवा तीव्र गंधवाले
सूंघे हुए पुष्प
पृथ्वीपर गिरे हुए
बाएं हाथसे लाए गए
जलमें डुबोकर धोए हुए पुष्प
दूसरोंको अप्रसन्न कर लाए हुए पुष्प
पहने हुए अधोवस्त्रमें अर्थात निचले वस्त्रमें लाए गए ऐसे पुष्प देवीमांको मत चढाइए ।
ऐसे पुष्प देवी मांको अर्पण करनेसे पूजकको कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं होता; अपितु देवी मांकी अवकृपा होनेसे ये पूजकके लिए हानिकारक हो सकता है । इसलिए उचित पुष्पोंकाही चयन करना चाहिए ।

संदर्भ – सनातनका ग्रंथ, ‘देवीपूजनसे संबंधित कृत्योंका शास्त्र‘


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कुलदेवी परम्परा : KULDEVI PARAMPARA (Hindi)


रेणिक बाफना
94063-00401
तालाब के सामने चंगोरा भाटा रायपुर छत्तीसगढ़
चित्र- श्री सच्चियाय माता,ओसियाँ , जोधपुर, राजस्थान 
कुलदेव कुलदेवी परम्परा
    (मेरी किताब जैन गोत्रो की कुल देवी कुलदेवता  का एक अंश )
 हमारे पूर्वजो ने हजारो सालो से प्रत्येक कुलवंश का एक कुलदेवता/ देवी निर्धारित कर रखा है , और पीढी दर पीढ़ी उसकी पूजा होती रही है, परन्तु यह परम्परा क्यों है? अध्यात्म का क्षेत्र जिज्ञासा का विषय भी है , भारतीय परम्परा में कार्य क्षेत्र के अनुसार उनके अधिष्ठाता देवी देवता होते है जैसे विद्या की देवी सरस्वती, चिकित्सा के देव धन्वन्तरी ,निर्माण के विश्वकर्मा,इत्यादि। इसके अलावा कुण्डली ज्योतिष के अनुसार कुछ अलग देवी देवता भी निर्धारित किये जाते है , जिन्हें इष्ट देव कहकर पुकारा जाता है , ये मित्र देव या अनुकूल देव होते है जो शीध्र प्रसन्न या सिद्ध किया हो जाते है. इसी परम्परा में हर क्षेत्र , नगर इत्यादि का भी एक अधिष्ठाता देव होता है.   हर मांगलिक कार्य एवं शुभ कार्यो में इनकी उपासना सबसे पहले की जाती है. ताकि मूल पूजा कार्य सफल हो. इसके अलावा विभिन्न संकट निवारण हेतु अलग अलग देवी देवता की उपासना की परम्परा होती है. जैसे शनि देव , हनुमान , बगलामुखी देवी ,गणेश, भैरव आदि।  इन सबमे सबसे महत्वपूर्ण कड़ी  कुलदेवी या कुलदेवता होते है। कुलदेवी/देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है. ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है. सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है.अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है. इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य  कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता।  इसे यूं समझे - यदि घर का मुखिया पिताजी /माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के " अंकल जी " आपके भले के लिया आपके घर में प्रवेश नही कर सकतेम क्योकि वे "बाहरी " होते है। मैंने अपने जीवन में ऐसे परिवार देखे है जो कुलदेव /देवी की उपेक्षा से दरिद्र , हुए या जीवन भर कष्ट उठा ते रहे.अत: आप महावीर स्वामी  को माने या गौतम बुद्ध को , या फिर संतो को , साथ में में कुलदेवी/कुलदेवता को मानना आवश्यक है. कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना चाहिये, खासकर सांसारिक लोगो को !
         अकसर  कुलदेवी  ,देवता और इष्ट देवी देवता  एक ही हो सकते है , इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परे होती है.जैसे नियमित दीप व् अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या याद करना , विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना, घर में कोई पकवान आदि बनाए तो पहले उन्हें अर्पित करना फिर  घर के लोग खाए, हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्य में उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि।  इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदि आपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी तब भी कुलदेवी देवता नही बदलेंगे , क्योकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है . किन्तु धर्म या पंथ बदलने सके साथ साथ यदि कुल देवी देवता का भी त्याग कर दिया तो जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश , दरिद्रता, बीमारिया , दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि। वही इन उपास्य देवो की वजह से दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते भी होते भी देखा गया है.
      ऐसे अनेक परिवार भी मैंने देखा है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम , उदाहरण के लिए ८ वी से १० वी शताब्दि में अनेक राजस्थानी मूल के लोग जैन पंथ में दीक्षित होकर जैन परम्परा को अपना लिए एवं जैन तीर्थंकरो की पूजा करने लगे तथा जैन सिद्ध संतो को मानने लगे , किन्तु कुलदेवी /देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते , वे अभी भी वही रहेंगे जो ८ वीं शताब्दी पूर्व से उनके पूर्वजो ने अपनाया था।
       इसी तरह धर्म परिवर्तन करके सिक्ख और इसाई बने लोगो पर भी यही सिद्धांत लागू होगा। (धर्म बदलने से आपके दादा परदादा नहीं बदलेंगे ).
          प्राचीन भारतीय परम्परा के अनुसार जैनियों के लिये कुलदेवी देवता की प्रथम उपासना के बाद ही अन्य  उपासना जैसे तीर्थंकर  उपासना या दादागुरुदेव उपासना फलीभूत होगी।
        एक और बात ध्यान देने योग्य है- किसी महिला का विवाह होने के बाद ससुराल  की कुलदेवी /देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के।  इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य  परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गये परिवार के कुल देव उपास्य होंगे।
कुल परम्परा कैसे जाने ?-
अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता /देवी के बारे में जानकारी लेवें, यदि मालूम न हो तो यह जानने की कोशिश  करे की झडूला / मुण्डन सस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है , या "जात" कहा दी जाती है , या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (५,६,७ वां ) कहा होता है। हर गोत्र / धर्म के अनुसार भिन्नता  होती है. सामान्यत:  ये कर्म कुलदेवी/कुलदेवता के सामने होते है. और यही इनकी पहचान है. कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है , जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है (निर्वंशी हो रहे हों , आर्थिक  उन्नति नही हो रही है , विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो , उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।  कभी कभी इस तरह के उत्पात पितृ देव / पितर के कारण भी होते है.
 गुरु रहस्य
आध्यात्म में दो पद्धति सुनी जाती है - एक गुरुमार्गी दूसरा मंदिर मार्गी , दोनों में क्या भेद है ? मंदिर मार्गी या मूर्तिपूजक एक मंदिर में बैठकर अपनी इच्छित मूर्ति बैठाकर उसे ईश्वर मानकर उसमे ध्यान लगाता है. उसकी पूजा करता है. परन्तु धीरे धीरे भिन्न २ प्रकार ढकोसलो के जुडने से कुछ गुरुओ ने भौतिक साधनों (मूर्ति वगैरह )की बजाय गुरु को ही माध्यम मानकर उपासना करने पर जोर देने लगे (निराकार उपासना )।  पर कलयुग में धंधे बाजो ने गुरु शब्द का व्यवसायीकरण कर दिया।  स्वयं को महान गुरु तथा खुद को ईश्वर घोषित कर या स्वयं को भगवान घोषित कर खुद की उपासना करवाने लगे। लोग भी अंधाधुन्द इन्ही गुरुओ के पीछे भागने लगे पागलो की तरह।इसकी आड़ में ठगी और गलत कार्य भी होने लगे , फिर ठगे जाने पर  आस्था भी ख़त्म होने लगी।

(मेरा आगे निजी अनुभव है कि कुलदेवी/देवता आपको धनवान नहीं बना सकते या कोई शारीरिक कष्ट/बीमारी दूर नहीं कर सकते। ये कोई मोहल्ले के दादा की तरह है जो हप्ता वसूली के लिए आ सकते है पर धंधा चलाने में कोई मदद नहीं कर सकते। मैंने साधको और दैवी शक्ति सम्पन्नो को अक्सर दरिद्र ही देखा है।
सुख में सुमिरन भी करेंगे तो भी दुःख आएंगे ही। इसीलिए बहुत ज्यादा उम्मीद न करे जैसा कि धंधेबाज प्रचारित करते है)

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TAG: KULDEVI JI

POSTED ONSEPTEMBER 8, 2017
कुलदेव क्या है, कैसै जाने


प्रत्येक हिन्दू परिवार किसी न किसी ऋषि के वंशज हैं जिनसे उनके गोत्र का पता चलता है ,बाद में कर्मानुसार इनका विभाजन वर्णों में हो गया विभिन्न कर्म करने के लिए ,जो बाद में उनकी विशिष्टता बन गया और जाति कहा जाने लगा । पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की हर जाति वर्ग , किसी न किसी ऋषि की संतान है और उन मूल ऋषि से उत्पन्न संतान के लिए वे ऋषि या ऋषि पत्नी कुलदेव / कुलदेवी के रूप में पूज्य हैं ।जीवन में कुलदेवता का स्थान सर्वश्रेष्ठ है | आर्थिक सुबत्ता, कौटुंबिक सौख्य और शांती तथा आरोग्य के विषय में कुलदेवी की कृपा का निकटतम संबंध पाया गया है |पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/ऊर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहें |कुलदेवी/देवता दरअसल कुल या वंश की रक्षक देवी देवता होते है। ये घर परिवार या वंश परम्परा की प्रथम पूज्य तथा मूल अधिकारी देव होते है । सर्वाधिक आत्मीयता के अधिकारी इन देवो की स्थिति घर के बुजुर्ग सदस्यों जैसी महत्वपूर्ण होती है । अत: इनकी उपासना या महत्त्व दिए बगैर सारी पूजा एवं अन्य कार्य व्यर्थ हो सकते है। इनका प्रभाव इतना महत्वपूर्ण होता है की यदि ये रुष्ट हो जाए तो अन्य कोई देवी देवता दुष्प्रभाव या हानि कम नही कर सकता या रोक नही लगा सकता। इसे यूं समझे – यदि घर का मुखिया पिताजी /माताजी आपसे नाराज हो तो पड़ोस के या बाहर का कोइ भी आपके भले के लिया आपके घर में प्रवेश नही कर सकता क्योकि वे “बाहरी ” होते है।सकर सांसारिक लोगो को कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना चाहिये,ऐसे अनेक परिवार देखने मे आते है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम नही होता है। किन्तु कुलदेवी /देवता को भुला देने मात्र से वे हट नही जाते , वे अभी भी वही रहेंगे । यदि मालूम न हो तो अपने परिवार या गोत्र के बुजुर्गो से कुलदेवता।/देवी के बारे में जानकारी लेवें, यह जानने की कोशिश करे की झडूला / मुण्डन सस्कार आपके गोत्र परम्परानुसार कहा होता है , या “जात” कहा दी जाती है । या विवाह के बाद एक अंतिम फेरा (५,६,७ वां ) कहा होता है। हर गोत्र / धर्म के अनुसार भिन्नता होती है. सामान्यत: ये कर्म कुलदेवी/कुलदेवता के सामने होते है. और यही इनकी पहचान है ।पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने ,जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने ,संस्कारों के क्षय होने ,विजातीयता पनपने ,इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है ,इनमें पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं ,कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया |कुल देवता /देवी की पूजा छोड़ने के बाद कुछ वर्षों तक तो कोई ख़ास अंतर नहीं समझ में आता ,किन्तु उसके बाद जब सुरक्षा चक्र हटता है तो परिवार में दुर्घटनाओं ,नकारात्मक ऊर्जा ,वायव्य बाधाओं का बेरोक-टोक प्रवेश शुरू हो जाता है ,उन्नति रुकने लगती है ,पीढ़िया अपेक्षित उन्नति नहीं कर पाती ,संस्कारों का क्षय ,नैतिक पतन ,कलह, उपद्रव ,अशांति शुरू हो जाती हैं ,व्यक्ति कारण खोजने का प्रयास करता है, कारण जल्दी नहीं पता चलता क्योकि व्यक्ति की ग्रह स्थितियों से इनका बहुत मतलब नहीं होता है ,अतः ज्योतिष आदि से इन्हें पकड़ना मुश्किल होता है ,भाग्य कुछ कहता है और व्यक्ति के साथ कुछ और घटता है|पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की कुल देवता या देवी हमारे वह सुरक्षा आवरण हैं जो किसी भी बाहरी बाधा ,नकारात्मक ऊर्जा के परिवार में अथवा व्यक्ति पर प्रवेश से पहले सर्वप्रथम उससे संघर्ष करते हैं और उसे रोकते हैं ,यह पारिवारिक संस्कारों और नैतिक आचरण के प्रति भी समय समय पर सचेत करते रहते हैं ,यही किसी भी ईष्ट को दी जाने वाली पूजा को ईष्ट तक पहुचाते हैं ,,यदि इन्हें पूजा नहीं मिल रही होती है तो यह नाराज भी हो सकते हैं और निर्लिप्त भी हो सकते हैं ,,ऐसे में आप किसी भी ईष्ट की आराधना करे वह उस ईष्ट तक नहीं पहुँचता ,क्योकि सेतु कार्य करना बंद कर देता है ,,बाहरी बाधाये ,अभिचार आदि ,नकारात्मक ऊर्जा बिना बाधा व्यक्ति तक पहुचने लगती है ,,कभी कभी व्यक्ति या परिवारों द्वारा दी जा रही ईष्ट की पूजा कोई अन्य बाहरी वायव्य शक्ति लेने लगती है ,अर्थात पूजा न ईष्ट तक जाती है न उसका लाभ मिलता है| ऐसा कुलदेवता की निर्लिप्तता अथवा उनके कम शशक्त होने से होता है ।कुलदेव परम्परा भी लुप्तप्राय हो गयी है, जिन घरो में प्राय: कलह रहती है, वंशावली आगे नही बढ रही है (निर्वंशी हो रहे हों , आर्थिक उन्नति नही हो रही है, विकृत संताने हो रही हो अथवा अकाल मौते हो रही हो, उन परिवारों में विशेष ध्यान देना चाहिए।समय क्रम में परिवारों के एक दुसरे स्थानों पर स्थानांतरित होने ,धर्म परिवर्तन करने ,आक्रान्ताओं के भय से विस्थापित होने, जानकार व्यक्ति के असमय मृत होने, संस्कारों के क्षय होने, विजातीयता पनपने, इनके पीछे के कारण को न समझ पाने आदि के कारण बहुत से परिवार अपने कुल देवता /देवी को भूल गए अथवा उन्हें मालूम ही नहीं रहा की उनके कुल देवता /देवी कौन हैं या किस प्रकार उनकी पूजा की जाती है । इनमे पीढ़ियों से शहरों में रहने वाले परिवार अधिक हैं । पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की कुछ स्वयंभू आधुनिक मानने वाले और हर बात में वैज्ञानिकता खोजने वालों ने भी अपने ज्ञान के गर्व में अथवा अपनी वर्त्तमान अच्छी स्थिति के गर्व में इन्हें छोड़ दिया या इन पर ध्यान नहीं दिया |पूर्व के हमारे कुलों अर्थात पूर्वजों के खानदान के वरिष्ठों ने अपने लिए उपयुक्त कुल देवता अथवा कुलदेवी का चुनाव कर उन्हें पूजित करना शुरू किया था ,ताकि एक आध्यात्मिक और पारलौकिक शक्ति कुलों की रक्षा करती रहे जिससे उनकी नकारात्मक शक्तियों/उर्जाओं और वायव्य बाधाओं से रक्षा होती रहे तथा वे निर्विघ्न अपने कर्म पथ पर अग्रसर रह उन्नति करते रहे |पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की कुलदेवता या देवी सम्बंधित व्यक्ति के पारिवारिक संस्कारों के प्रति संवेदनशील होते हैं और पूजा पद्धति ,उलटफेर ,विधर्मीय क्रियाओं अथवा पूजाओं से रुष्ट हो सकते हैं ,सामान्यतया इनकी पूजा वर्ष में एक बार अथवा दो बार निश्चित समय पर होती है ,यह परिवार के अनुसार भिन्न समय होता है और भिन्न विशिष्ट पद्धति होती है ,,शादी-विवाह-संतानोत्पत्ति आदि होने पर इन्हें विशिष्ट पूजाएँ भी दी जाती हैं ,,,यदि यह सब बंद हो जाए तो या तो यह नाराज होते हैं या कोई मतलब न रख मूकदर्शक हो जाते हैं और परिवार बिना किसी सुरक्षा आवरण के पारलौकिक शक्तियों के लिए खुल जाता है ,परिवार में विभिन्न तरह की परेशानियां शुरू हो जाती हैं ,,अतः प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को अपने कुल देवता या देवी को जानना चाहिए तथा यथायोग्य उन्हें पूजा प्रदान करनी चाहिए, जिससे परिवार की सुरक्षा -उन्नति होती रहे ।कुलदेवी देवता की उपासना इष्ट देवी देवता की तरह रोजाना करना चाहिये, खासकर सांसारिक लोगो को !अकसर कुलदेवी ,देवता और इष्ट देवी देवता एक ही हो सकते है , इनकी उपासना भी सहज और तामझाम से परे होती है.जैसे नियमित दीप व् अगरबत्ती जलाकर देवो का नाम पुकारना या याद करना , विशिष्ट दिनों में विशेष पूजा करना, घर में कोई पकवान आदि बनाए तो पहले उन्हें अर्पित करना फिर घर के लोग खाए, हर मांगलिक कार्य या शुभ कार्य में उन्हें निमन्त्रण देना या आज्ञा मांगकर कार्य करना आदि। पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस कुल परम्परा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की यदि आपने अपना धर्म बदल लिया हो या इष्ट बदल लिया हो तब भी तब भी कुलदेवी देवता नही बदलेंगे , क्योकि इनका सम्बन्ध आपके वंश परिवार से है . किन्तु धर्म या पंथ बदलने सके साथ साथ यदि कुल देवी देवता का भी त्याग कर दिया तो जीवन में अनेक कष्टों का सामना करना पद सकता है जैसे धन नाश , दरिद्रता, बीमारिया , दुर्घटना, गृह कलह, अकाल मौते आदि। वही इन उपास्य देवो की वजह से दुर्घटना बीमारी आदि से सुरक्षा होते भी होते भी देखा गया है.ऐसे अनेक परिवार भी मैंने देखा है जिन्हें अपने कुल देवी देवता के बारे में कुछ भी नही मालूम || एक और बात ध्यान देने योग्य है- किसी महिला का विवाह होने के बाद ससुराल की कुलदेवी /देवता ही उसके उपास्य हो जायेंगे न की मायके के। इसी प्रकार कोई बालक किसी अन्य परिवार में गोद में चला जाए तो गोद गये परिवार के कुल देव उपास्य होंगे।

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