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Monday, October 16, 2017

Mahakali महाकाली का स्वरूप -

 Mahakali महाकाली का स्वरूप -

The nature of Mahakali महाकाली का स्वरूप -

Mahakali the Power of Mahakal Nature in Hindi : जब सृष्टि नहीं थी, अंतरिक्ष नहीं था , जब कहीं पर भी कुछ भी नहीं था उस समय केवल अन्धकार था । घना अन्धकार । वह अन्धकार रूप जिसे ना कोई जान सकता था , और ना ही पारिभाषित कर सकता था ऐसा वह तत्त्व ही महाकाल है । उस महाकाल की शक्ति महाकाली है । महानिर्माणतंत्र में कहा गया है कि शिव ने देवी से कहा जगत् का संहार करने वाला महाकाल ही तुम्हारा रूप विशेष है सभी प्राणियों को ग्रास रूप बना लेने के कारण तुम आद्याकालीका एवं काली हो ।
दस महाविद्याओं में प्रथम है काली-

दस महाविद्याओं में काली प्रथम है । कालिकापुराण में कथा आती है कि एक बार देवताओं ने हिमालय पर जाकर महामाया का स्तवन किया । यह स्थान मतङ्ग मुनि का आश्रम था । स्तुति से प्रसन्न होकर भगवती ने मतङ्गबनिता बनकर देवताओं को दर्शन दिया और पूछा कि तुम लोग किसकी स्तुति कर रहे हो । उसी वक्त भगवती के श्री विग्रह से काले पहाड़ के समान वर्णवाली दिव्य नारी का प्राकट्य हुआ और उन्होंने स्वयं ही देवताओं की ओर से उत्तर दिया कि ये देवता उसकी ही स्तुति कर रहे हैं । वह काजल के समान काली होने से काली कहलाई ।
नारद पांचरात्र के अनुसार महाकाली-

नारद पांचरात्र के अनुसार सती पिता दक्ष पर क्रुद्ध होकर शरीर का परित्याग करती है और मेनका के घर उस पर अनुग्रह कर उसके यहाँ जन्म लेती है वही महाकाली है । “दक्ष गृहे समद्भुता सा सती लोक विश्रुता कुपित्वा दक्ष राजर्षि सती त्यक्त्वा कलेवरम् अनुगृह्य च मेना मां जाता तस्यां नु सा तद । काली नामेति विख्याता सर्व शास्त्रे प्रतिष्ठिता । नारद पा. 375 ॥”
दुर्गा सप्तशती के अनुसार महाकाली-

दुर्गा सप्तशती में कहा गया है । “तस्यां विनिर्गतायां तु कृष्णा भूत् सापिपार्वती । ” 5188 । शुम्भ निशुम्भ से पीड़ित होकर देवता हिमालय पर देवी की स्तुति कर रहे थे । पार्वती ने देवताओं से जिज्ञासा की कि “आप लोग किसकी स्तुति कर रहे है । ” तब पार्वती के शरीर से उत्पन्न हुई शिवा ने कहा देवगण मेरी ही स्तुति कर रहे हैं । पार्वती के शरीर से उत्पन्न होने के कारण अम्बिका कौशिकी कहलाई और इनके आविर्भाव के बाद पार्वती कृष्णा हो गई और काल के बल से काली कहलाने लगी ।
दक्षिणा काली और पौराणिक काली-

यह काली दुर्गाजी के स्वरूपों में से एक ही स्वरूप हैं यह दक्षिण काली से सर्वथा भिन्न है । भगवती आद्या काली अथवा दक्षिणा काली अनादि रूपा सारे चराचर की स्वामिनी है । जबकि पौराणिक काली तमोगुण स्वामिनी है । निर्माणतंत्रानुसार “दक्षिणास्यां दिशिस्नाने संस्थितश्च खे सुतः । काली नाम्ना पलायेत भीत्तियुक्त समन्ततः अतः सा दक्षिणा काली त्रिषुलोकेशुगीयते ।” दक्षिण दिशा में रहने वाला अर्थात सूर्य का पुत्र यम भगवती काली का नाम सुनते ही डर कर भाग जाता है । तथा काली उपासकों को नरक में ले जाने की उसमें सामर्थ्य नहीं है । इसलिए काली को दक्षिणा काली या कालिका भी कहा जाता है । यही दक्षिणा काली दश महाविद्याओं में प्रधान है ।
महाकाली का स्वरूप –

1. शव पर आरूढ़  – प्रलय काल में विश्व शक्ति विहीन शव रूप में पड़ा है उस पर वह खड़ी है ।

2. भयानक आकृति -उसकी दृष्टा बड़ी तीक्ष्ण अतएव महाभयावह है । शत्रु संहार करने वाला योद्धा की आकृति महाभयावह हो जाती है। साधारण मनुष्य तो उसकी और देख भी नहीं सकता । प्रलय रात्रि रूपा संहार कारिणी शक्ति के इसी स्वरूप को बतलाने के लिए भयानक आकृति को निदान माना है ।

3. अट्टाहास -शत्रु पक्ष की सेना को नष्ट कर योद्धा अट्टाहास करता है । उसका हंसना भीषणता लिए होता है । उस समय उसी का साम्राज्य हो जाता है । यही स्थिति महाकाली की है ।

4. चार हाथ -प्रत्येक गोलवृत्त में 360 अंश माने जाते है उसके 10 -10 के चार विभाग माने जाते हैं । यही उसी व्रत की चार भुजायें हैं । वह महाकाली पूर्ण रूपाचतुरस्त्र है । अनन्ताकाश रूप महाअवकाश में चतुर्भुज पूर्ण तत्त्व लिए हुए अपनी पूर्णता प्रकट करती है । वही विश्व का संहार करती है यही रहस्य का निदान चार भुजायें है ।

5. एक हाथ में खड्ग -नाश शक्ति का निदान खड्ग है ।

6. एक हाथ में नरमुण्ड -नष्ट होने वाले प्राणियों का निदान कटा मस्तक है ।

7. एक हाथ में अभयमुद्रा -महाकाली संहार करती है, डरावनी है, और रूपा है, सभी कुछ है, परन्तु वह अभय प्रदान करने वाली भी है अतः मुद्रा इसी का निदान है ।

8. एक हाथ में वर -विश्व सुख क्षणिक है अतएव दुःख रूप है । परम सुख तो उसी की आराधना से मिलता है जब वह देवी से वर प्राप्त करता है ।

9. गले में मुण्ड माला -जीवित दिशा में जो सबका आधार थी, प्रलय काल में भी वही सब का आधार है । ध्वस्त विश्व के निर्जीव प्राणियों का निर्जीव भाग भी उसी पर है । उस व्यापक तत्त्व के बाहर कोई कैसे बच सकता है । इसी परायण भाव का निदान मुण्डमाल है । जीवित और मृत विश्व का आधार है । मृत प्राणियों का भी एक मात्र सहारा है ।

10. दिशाएं वस्त्र है -महाकाली शक्ति का आवरण विश्व से हो जाता है, विश्व ही उसका वस्त्र है परन्तु विश्वनाश के अनन्तर वह स्वस्वरूप से उन्वन है, उस स्थिति में आवरण का अभाव है वहाँ केवल दिशायें ही वस्त्र हैं ।

11. श्मशान आवरण भूमि -इस शक्ति का पूर्ण विकास काल है, विश्व का प्रलय काल । सारा विश्व जब शमशान बन जाता है, तब उस तमोमयी का विकास होता है । शमशान उसी अवस्था का निदान है ।
महाकाली  के मन्दिर

गौड़ क्षत्रिय वंश महाकाली के उपासक रहे है वे महाकाली को अपनी कुलदेवी मानते है । काली कालिका, महाकालीका का समिश्रित रूप महाशक्ति से है । इस विद्या स्वरूपा महाशक्ति के भारतवर्ष में अनेक मन्दिर हैं। राजस्थान में अनेक मन्दिर दर्शनीय है । जिनमें सिरोही स्थित कालका देवी का मन्दिर आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है । ज्ञातव्य है सिरोही नरेश महाराव लाखा इस देवी की प्रतिमा को पावागढ़ (गुजरात) से लाये थे । जो कि कालका जलाशय किनारे कालका माता की मूर्ति के रूप में प्रतिष्ठित है । विशाल एवं प्राचीन वट वृक्ष के नीचे स्थित इस मन्दिर के पास मीठे पानी की बावड़ी विद्यमान है वहीं मन्दिर के दायी ओर दुर्जनेश्वर महादेव का मन्दिर प्राचीन है । कालका जलाशय महाराव अखेराज ने बनवाया था ।
डूंगरपुर स्थित सिंह वाहिनी देवियां कालीमाता व धनमाता का मन्दिर दर्शनीय है ।
झालावाड़ स्थित महाकाली का मन्दिर भी प्राचीन है । मन्दिर के गर्भ गृह के मध्य में महाकाली की की अष्ट भुजा वाली प्रतिमा स्थापित है । सितलेश्वर महादेव के मन्दिर की तरह इसमें भी अन्तरालय गर्भगृह तथा स्तम्भ बने हुए है । अन्तरालय में 10 भुजाओं वाली कालिका के दर्शन होते है । वस्तुतः महाकाली का यह मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित था । विष्णु की मूल प्रतिमा दरवाजे के सम्मुख है ।
चित्तौड़गढ़ दुर्ग में कालिकामाता का विशाल मन्दिर निर्मित है । मन्दिर के स्तम्भों एवं प्रवेशद्वार पर तक्षण का कार्य अदभुत है । स्थापत्य कला को देखते हुए इस मन्दिर का निर्माण 8वीं. शताब्दी ई. लगता है । वस्तुतः यह सूर्य मन्दिर था । इस मन्दिर की मुख्य सूर्य प्रतिमा को मुस्लिम आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था अनन्तर वहां कालिका माता मूर्ति स्थापित की गई । जिससे वह कालिकामाता मन्दिर कहलाने लगा । चित्तौड़ एवं आसपास के हजारों श्रद्धालु माँ के दर्शन करने यहाँ आते हैं । नवरात्रा के दिनों में यहाँ विशेष पूजा अर्चना होती है । प्रवासी एवं अप्रवासी गौड़ राजपूत भी यहाँ पहुँचकर अपनी आस्था को प्रकट करते है ।
जयपुर से 65 कि.मी. की दूरी पर निवाई स्थित है । जहाँ काली माता का प्राचीन मन्दिर विद्यमान है । इसी तरह झालाना डूंगरी की काली माता और घाट की गुणी स्थित काली माता प्राचीन मन्दिर प्रसिद्ध है ।

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